Wednesday, May 18, 2011

गाव की यात्रा

दोस्तों पिछले 11  दिनों से गाव में था, गाव में बस से उतारते ही मेरी तबियत ठीक  हो गई, गाव के बस स्टेंड के पीपल गर्म हवाओ के झोको में लहर मार रहा था गाव का वो नमकीन जैसा  खारा पानी  की वो टंकी देख कर मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा, बचपन के दिन याद आने लगे जैसे जैसे मै घर की और बढने लगा, रास्ते में जो भी मिलता में मेरे हल पूछने लगता. और गाव का एक नया किस्सा मुझे बताता और आगे बढ जाता, घर पहुचते पहुचते गाव की आदि बाते किस्से लगभग मुझे समझ आ गये, गाव में सयुक्त परिवार में रहते है और लगभग  सभी परिवारों में शादी का माहोल बना हुआ था कुछ भी कहो, गाव तो गाव होता है घर पर मेला सा लगा हुआ था इसी भीड़ को मै पहचान गया भीड़ बारात जाने की तैयारीमें लगे हुए थे, सभी नो जवानो ने वाही पश्चमी सभ्यता के कपडे और 45 से ऊपर के लोगो ने सर पर फेटा (साफा) पहना हुआ था आज तक जो भी बारात गई है वो मेरे घर पर से ही बस में बैठती है इसी जगह पर मेरा घर है.

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