केंद्र सरकार की सहायता से राजस्थान सरकार ने माँ (जननी शिशु सुरक्षा योजना) शुरू की। जिसकी शुरूवात 12 सितम्बर 2011 से शुरू हो गई। इस योजना मे गर्भवती महिला के आने वाली परेशानियों को दूर करने का वादा किया गया।
सरकार ने इसके लिए बाकायदा अखबारों मे विज्ञापन निकलवाये थे। विज्ञापनों की गूंज राष्ट्रीय संस्करणों मे देखने को मिली। राजस्थान सरकार को शायद प्रचार का यही माध्यम सही लगा। लेकिन एक राज्य की योजना को लेकर राष्ट्रीय संस्करणों मे विज्ञापन निकलवाने का कोई अर्थ नहीं बनता। योजन राज्य के लिए है तो, फिर राष्ट्रीय संस्करणों मे विज्ञापन क्यों ? ये एक बड़ा सवाल है क्या ये सरकार का पैसा व्यर्थ मे नहीं गया ? हो सकता है की केंद्र को दिखने के लिए विज्ञापन दिया गया हो। लेकिन, फिर भी इसका कोई अर्थ नहीं बनता है जहाँ तक मुझे पता है। पार्टी के कार्यालय मे राजस्थान का अख़बार भी आता होगा जो भी राज्य संस्करण चलिए मान लेते नहीं आता और दिखने के लिए छपवा भी दिया तो, योजना को सही रूप से लागु तो करना चाहिए
12 से 14 सितम्बर 2011 को शुरू किया गया लेकिन जब 16 सितम्बर को ही एक जनाना को अपने घर जाने के लिए इस योजना का लाभ लेना चाह तो इसके बदले मे महिला को घंटो इंतजार करना पड़ा ? घटना अजमेर की है जनाना अस्पताल के बाहर गोद में नवजात को लिए बैठी दो प्रसूताओं को लंबे समय तक एम्बुलेंस का इंतजार करना पड़ा। इससे मां व नवजात का गर्मी के मारे बुरा हाल हो गया। कारण एम्बुलेंस बताया गया। जननी शिशु सुरक्षा योजना में प्रसूताओं को उनके घर तक छोड़ने का भी प्रावधान किया गया है। इसके लिए जनाना अस्पताल में एम्बुलेंस 108 लगाई गई है लेकिन एम्बुलेंस चालक की मजबूरी कहें या फिर योजना की बंदिशें, एम्बुलेंस चालक का कहना था कि वह एक साथ चार प्रसूताओं को लेकर ही यहां से रवाना होगा। थोड़ी देर बाद वहां एक और प्रसूता आ गई। उसे भी अन्य प्रसूताओं के साथ वहां बैठना पड़ा। परिजन बच्चे और मां को हाथ पंखें से हवा खिलाते हुए दिलासा देते रहे कि अभी एम्बुलेंस आ जाएगी और हम घर चलेंगे। ऐसे करते डेढ़ घंटा गुजर गया। आखिर में जब एम्बुलेंस चालक को चौथी प्रसूता मिली, तब परिजन के राहत की उम्मीद बंधी और वह एम्बुलेंस में बैठ पाए। उनके बैठने के बाद एम्बुलेंस खचाखच भरी गई, एक ही एम्बुलेंस में चार प्रसूता, नवजात और उनके परिजनों के कारण एम्बुलेंस का दृश्य देखने लायक था।
जननी शिशु सुरक्षा योजना में संस्थागत प्रसव नि:शुल्क, आवश्यकतानुसार सिजेरियन आपरेशन नि:शुल्क, जाँच सुविधा नि:शुल्क, रक्त की कमी होने पर नि:शुल्क रक्त देना की योजना है दवाइयां एवं अन्य आवश्यक सामग्री नि:शुल्क, देने की योजना में सम्मिलित है लेकिन हालत कुछ और ही बयाँ कर रहे है जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम शुरू होने के बाद जनाना अस्पताल के चिकित्सकों का दावा है कि, उन्होंने किसी भी मरीज को बाहर की दवा नहीं लिखी है। इसके बावजूद अस्पताल में कुछ मरीजों को बाहर की दवा लिखने की शिकायतें सामने आई। गर्भवती महिला ने शिकायत की है “बच्ची के लिए तीन दवाइयां खरीद कर लानी पड़ी हैं। उन्होंने बताया कि एक नर्स ने बच्ची को इंजेक्शन लगाते वक्त लापरवाही बरती।“
डाक्टर लापरवाही कर रहे है। ब्यावर निवासी एक प्रसूता ने आरोप लगाया कि उसे तीन दिन पहले एक इंजेक्शन लिखा गया जो आज तक लगाया ही नहीं गया है। यहाँ अस्पतालों की लापरवाही नजर आती है आखिर किसके लिए बने गई है ये सब योजनाये और क्या ? जब आम जन को इसका उपयोग ही नहीं कर पा रहा है ये योजना आम जन की पंहुचा से दूर नजर आ रही है
राजस्थान सरकार के आनुसार प्रदेश में एक वर्ष में 5300 महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था संबंधी जटिलताओ के कारण होती है । जन्म के 1 वर्ष के भीतर 98,500 शिशुओं की मृत्यु हो जाती है । जन्म के 1 माह के भीतर 66,800 शिशुओं की मृत्यु हो जाती है । जन्म के 1 सप्ताह के भीतर 50,700 शिशुओं की मृत्यु हो जाती है ।
15 महीने में 115 प्रसूताओं और 950 से अधिक नवजात शिशुओं की मौत, दोनों ही में जयपुर काफी आगे है। अफसरों का दावा है, जननी सुरक्षा योजना से हालात सुधरेंगे। पर कैसे? प्रसूताओं और बच्चों की मौत दवा की कमी नहीं, संसाधन की कमी है, जो अब भी बनी हुई है। न तो अस्पतालों में न बैड बढ़े हैं और न ही डॉक्टर या स्टाफ। मरीजों को इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। आईएमसी नर्सिंग काउंसिल के अनुसार ‘पहले से ही जयपुर में 550 डॉक्टर और 2500 नर्सिंग स्टाफ की कमी है।,
ये मिलेगी सुविधाएं : योजना के तहत प्रसुताओं को प्रसव पूर्व व प्रसव के बाद 6 सप्ताह तक तथा नवजात शिशुओं को जन्म के 30 दिन तक चिकित्सालय से घर तक नि:शुल्क परिवहन, दवाइयां व जांचं होगी। इसी प्रकार प्रसुताओं को सामान्य प्रसव के तीन दिन तथा सिजेरियन प्रसव के सात दिन बाद चिकित्सालय में ताजा भोजन नि:शुल्क दिया जाएगा।
जिले की प्रसूता व शिशुओं को नि:शुल्क परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सा विभाग ने जिले में सरकारी व निजी अस्पताओं की एम्बलेंसों के अतिरिक्त 2 हजार 474 निजी वाहन अनुबंधित किए हैं।
दौसा के लिए 520, लोलसोट 685, बांदीकुई 559, सिकराय 322 तथा महुवा के लिए 389 निजी वाहन अनुबंधित किए गए हैं। इन वाहनों की सूची उस क्षेत्र के चिकित्सालयों में मय मोबाइल नम्बर के चस्पा की जाएगी। किसी भी प्रसूता द्वारा फोन करने पर सम्बन्घित क्षेत्र का वाहन चालक प्रसूता को चिकित्सालय पहुंचाने के साथ वापस घर की पहुंचाएगा।
इस दौरान यदि प्रसूता को गंभीरावस्था में उच्च चिकित्सालयों में रैफर किया जाता है तो भी उसी वाहन से वहां तक पहुंचाया जाएगा।
जिले की प्रसूता व शिशुओं को नि:शुल्क परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सा विभाग ने जिले में सरकारी व निजी अस्पताओं की एम्बलेंसों के अतिरिक्त 2 हजार 474 निजी वाहन अनुबंधित किए हैं।
दौसा के लिए 520, लोलसोट 685, बांदीकुई 559, सिकराय 322 तथा महुवा के लिए 389 निजी वाहन अनुबंधित किए गए हैं। इन वाहनों की सूची उस क्षेत्र के चिकित्सालयों में मय मोबाइल नम्बर के चस्पा की जाएगी। किसी भी प्रसूता द्वारा फोन करने पर सम्बन्घित क्षेत्र का वाहन चालक प्रसूता को चिकित्सालय पहुंचाने के साथ वापस घर की पहुंचाएगा।
इस दौरान यदि प्रसूता को गंभीरावस्था में उच्च चिकित्सालयों में रैफर किया जाता है तो भी उसी वाहन से वहां तक पहुंचाया जाएगा।
योजना बन गई है और लागु भी कर दी है देखना ये है की, अब कब तक ये आम जन की पंहुच में आती है। योजनाये तो हजारो बनती है। लेकिन उसको अम्ल करवाने की जिम्मेदारी किसी को नहीं दी जाती। जिससे की योजना व्यर्थ हो जाती है।
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