"अब क्या फेसबुक पर भी सरकार हावी हो जाएगी ? सरकार कुछ तस्वीरों के नाम पर बची कुची आवाजों को भी बंद कर देनी चाहती है ?"युवाको अपनी बात रखने की आजादी शायद अब न रहे। टेलिकॉम मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने इंटरनेट कंपनियों से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोहम्मद पैगंबर से जुड़ी कथित अपमानजनक, गलत और भड़काने वाली सामग्रियों को हटाने के लिए कहा है। क्या अब गूगल ,फेसबुक ,मेल, टूयूटर सरकार की मर्जी से चलेगे ? कपिल सिब्बल का माना है की ये देश में अराजकता पैदा कर रहे है।
शायद अब कपिल जी को अपने कार्टूनों का पता चल गया है। इस लिए वो फेसबुक पर भी सेंसर लगवाना चाहते है लेकिन फेसबुक पर तो पहले से ही इसके लिए कार्य किया जा रहा है। एक और सेंसर की आवश्कता क्या है ? लगातार देश में हो रहे घोटालो को उजागर करने में फेसबुक की अहम भूमिका रही है ये भूमिका चाहे प्रत्यक्ष रूप से न रही हो, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से ये सभी खबरों को जनता तक आसानी से पहुंचा रहा है ।
मिडिया को सरकार अपने अनुरूप भोकने वाला बना लिया है। इस लिए मिडिया एक पक्ष की खबरे ही दिखता है। राजनीतिक पार्टिया खबरे अपने अनुसार चलवाती है। मिडिया में सेंसर का प्रवधान है इस लिए कुछ खबरों को दिखाया ही नहीं जाता है टी वी और अखबारों में जनता की आवाज़ नहीं पैसा बोलता है । जन्हा से पैसा मिलेगा वही खबर चलेगी ।
फेसबुक पर भड़काऊ तस्वीरें दिखाईं। सिब्बल ने पूछा कि इन तस्वीरों के बारे में उनकी क्या राय है? सिब्बल ने उनसे कहा कि भारत सरकार सेंसरशिप में विश्वास नहीं करती है लेकिन विभिन्न समुदायों की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाले और अन्य संवेदनशील मसलों को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता। चूंकि ये कंपनियां इन साइट्स को चलाती हैं इसलिए उन्हें इसे नियमित करना होगा।
इससे पहले 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अखबार पे प्रतिबंध लगाया था। उस समय भी मिडिया की इतनी पहुँच जनता तक नहीं थी और, सोसल साइट्स का तो नाम ओ निशान नहीं था फिर, भी इंदिरा गांधी ने जनता की आवाज़ को दबाने का भरसक प्रयास किया था ।
कंपनियों की दलील है कि इनमें से ज्यादातर कंटेंट यूजर्स की ओर से ही आता है इसलिए इन पर नियंत्रण रखना मुश्किल है और ऐसे कंटेंट के लिए कंपनियों के प्रबंधन को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। हां, किसी खास मामले में अगर कोई शिकायत आती है तो वे जरूर देखेंगे लेकिन आम तौर पर इन्हें नियंत्रित करने से इस माध्यम का इंटरऐक्टिव चरित्र ही नष्ट हो जाएगा।
कपिल सिब्बल तस्वीरों से नहीं, जनता के आन्दोलन से डर रहे है। जनता फेसबुक पर एक जुट हो रही है । आपस में संवाद बनती है और एक दुसरे के पक्ष को जानने की कोशिश करती है। युवाओ में फेसबुक का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है और आज का युवा जानना चाहता है की देश में क्या हो रहा है उसके साथी किस विषय पर क्या सोचते है?
यदि बात केवल कुछ तस्वीरों को लेकर है तो ठीक है लेकिन जब ये इससे ज्यादा प्रतिबंद करते है तो ये जनतंत्र की आवाज़ पर हमला है ।
जनता कुछ तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करती है तो ये उसका विरोध जताने का एक तरीका है और तस्वीरों के नाम पर यदि ये विचारो पर रोक लगते है तो ये ठीक नहीं है
कपिल सिब्बल जो इन जैसी तस्वीरों के कारण फेसबुक पर प्रतिबन्ध की बाते करते है----
No comments:
Post a Comment