मानव अधिकार दिवस 2010 की थीम है
'भेदभाव के अंत तक कार्य करने वाले मानव अधिकार रक्षक'.
विश्व में मानव अधिकार की व्यापक गरिमा फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) से स्थापित हुई। जाँ जैक रूसों के संविदा सिद्धांत से प्रेरित क्रांति के समय संविधान सभा ने यह घोषणा की थी कि संविधान निर्मित होने पर सर्वप्रथम मानव अधिकारों का उल्लेख किया जाएगा। यह घोषणा वास्तव में जार्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में अमरीका (संयुक्त राज्य) की स्वतंत्रता की घोषणा (सन् 1778 ई.) के सिद्धांतों से प्रेरित थी। मानव अधिकार की घोषणा के आधार पर समता, स्वतंत्रता एवं बंधुता का कानूनी अधिकार प्राप्त हुआ।
26 जनवरी, 1950 ई. से लागू भारतीय संविधान ने भी मौलिक अधिकार जनता को दिए हैं किंतु संपत्ति के अधिकार पर आधारित होने के कारण ये उतने व्यापक नहीं हो सके हैं जितने सोवियत संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार। भारतीय संविधान ने धर्म, प्रजाति, जाति, लिंग के भेदभाव को मिटाकर कानून के समक्ष समता का अधिकार प्रदान किया है। अस्पृश्यता तथा बेगारी का अंत कर दिया है। सरकार की ओर से मिलने वाली उपाधियों का अंत कर दिया है। भाषण, सभा, संगठन, आवागमन की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। शोषण के संरक्षण का अधिकार दिया गया है।
मानव अधिकार दिवस की तिथियों की शुरूआत औपचारिक रूप से सन 1950 से मानी जाती है, क्योंकि इसी वर्ष 10 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अध्यादेश 423 (V) पारित किया था, जिसके बाद यह इच्छुक संगठनों द्वारा अपनाया गया।
मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही बहस रही है। जब अबु सलेम, अफजल गुरु जैसे हत्यारे और आतंकियों के मानवाधिकार की बात की जाती है तो, यह निरर्थक लगती है।
जब तक बात अपराधियों की है तब तक तो सब सही है। क्योंकि, एक बलात्कारी, आतंकवादी या हत्यारे का कोई मानवाधिकार तो होना ही नहीं चाहिए। लेकिन, इन्हीं अपराधियों के साये में जब कोई निर्दोष हत्थे चढ़ जाता है या प्रशासन सच उगलवाने के लिए गैरकानूनी रूप से किसी को शारीरिक या मानसिक यातना देता है तब समझ में आता है मानवाधिकार कितना जरुरी है।
मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जो सभी सामाजिक विषयों में सबसे गंभीर है जिसे हम एक तरफा हो कर नहीं सोच सकते. पर अपने राजनीतिक या अन्य बुरे मंसूबों को सफल बनाने के लिए
मानवाधिकारों का सहारा लेना बिलकुल गलत है. मानवाधिकार मानव का मौलिक अधिकार होता है दानव का नहीं, आतंकवादी तो मानव के श्रेणी में आते ही नहीं है फिर, उनको इस श्रेणी का कोई अधिकार प्राप्त होना ही नहीं चाहिए।
भारत में संसद पर हमले की घटना के बाद टाडा की जगह पोटा को अंजाम दिया गया। नई सरकार ने पोटा हटाकर उसके प्रावधानों को दूसरे कानून में समाहित कर दिया। दरअसल पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के सवालों के खिलाफ वैश्विक स्तर पर सरकारों ने लड़ने की कई सतहें तैयार की हैं। एक तो अमेरिकी और यूरोपीय यूनियन की सरकारें हैं जो खुद के भूगोल में लोकतांत्रिक और मानवाधिकार संरक्षक के रूप में दिखना चाहती हैं लेकिन उसके बाहर मानवाधिकारों की धज्जियां भी उड़ाती हैं और मानवाधिकारों का दमन वाली ताकतों को संरक्षण भी प्रदान करती है।
आतंकवादी संगठन हरकत-उल-जेहादी इस्लामी (हूजी) ने दिल्ली हाईकोर्ट में हुए बम धमाके की जिम्मेदारी लेते हुए और हमलों की धमकी दी। हूजी आतंकी संगठन ने कहा है, "हम आज दिल्ली हाईकोर्ट में हुए विस्फोट की जिम्मेदारी लेते हैं। हमारी मांग है कि अफजल गुरु की फांसी की सजा को रद्द किया जाए, वरना हम प्रमुख हाईकोर्टों और भारत की सुप्रीम कोर्ट को निशाना बनाएंगे।" सवाल ये बनता है की, हुजी जैसे संगठन अफजल की फांसी अभी तो रुकवाने के लिए बम विस्फोट कर रहे है। आगे क्या गारंटी है की हूजी संगठन अफजल को छुडवाने के लिए कोई चाल नहीं चलेगां?
अफजल गुरु को वर्ष 2001 में संसद भवन पर हुए आतंकवादी हमले के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है, और उसकी ओर से फांसी को उम्रकैद में तब्दील करने के लिए दी गई दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है। अफजल गुरू ने हुर्रियत के नेता सैयद अली शाह गिलानी को भेजे पत्र के माध्यम से कहा कि उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर गलती की। उसका कहना है कि वह जान देकर शहीद होने को तैयार है। कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कहा कि अफजल की फांसी का घाटी में गलत संदेश जाएगा,
अफजल गुरु को वर्ष 2001 में संसद भवन पर हुए आतंकवादी हमले के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है, और उसकी ओर से फांसी को उम्रकैद में तब्दील करने के लिए दी गई दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है। अफजल गुरू ने हुर्रियत के नेता सैयद अली शाह गिलानी को भेजे पत्र के माध्यम से कहा कि उसने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर गलती की। उसका कहना है कि वह जान देकर शहीद होने को तैयार है। कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कहा कि अफजल की फांसी का घाटी में गलत संदेश जाएगा,
वही कुपवाड़ा जिले के लांगेट विधानसभा क्षेत्र के विधायक शेख अब्दुल रशीद मानवीय आधार पर अफजल गुरु के लिए दया की मांग कर रहे है ।
भुल्लर को 1993 के रायसीना ब्लास्ट मामले में फांसी की सजा सुनाई गई थी। इस ब्लास्ट में 12 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 29 लोग घायल हो गए थे। इस ब्लास्ट में तत्कालीन युवक कांग्रेस नेता एम. एस. बिट्टा घायल हो गए थे। इस मामले में भुल्लर को गिरफ्तार किया गया और 25 अगस्त, 2001 को भुल्लर को निचली अदालत ने टाडा सहित अन्य धाराओं के तहत दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च, 2002 को फांसी की सजा को सुनिश्चित किया और 19 दिसंबर, 2002 को भुल्लर की याचिका खारिज कर दी। वर्ष 2004 के बाद पहली बार राष्ट्रपति की ओर से किसी दोषी को मृत्युदंड की सजा पर मुहर लगाई गई है। 2004 में धनंजय चटर्जी को फांसी की सजा सुनाई गई थी। सिख फॉर जस्टिस ने 12 दिसंबर 2011 को मानवाधिकार के लिए जेनेवा में यूएन आई कमीशन अन्य मानवाधिकार संगठनों को साथ लेकर एक याचिका भी दायर की जाएगी। जिसमें भुल्लर की सजा को माफ करवाने की अपील करेगें ।
यदि ऐसा ही होता रहा तो हर कोई व्यक्ति हत्या जैसे गंभीर अपराध करने से भी पीछे नहीं रहेगां। अपराधो की संख्या लगातार बढती चली जायेगी। फिर मानवाधिकार वाले संगठन आ जायेगें और सरकार फिर कहेगी की जैलो में जगह नहीं है।
मानवाधिकार घोषणा पत्र
कोई मनुष्य किसी का दास नहीं है
सभी मनुष्य अपने अधिकारों के लिए जन्मजात स्वतंत्र और समान हैं। घोषणापत्र में निर्धारित मानवाधिकार हर नस्ल, राष्ट्रीयता, धर्म और वर्ग के व्यक्ति के लिए समान हैं।
* हर मनुष्य को जीवनयापन करने, स्वतंत्र रहने और अपनी रक्षा करने का अधिकार है।
* कोई भी मनुष्य किसी अन्य व्यक्ति का दास नहीं है।
* किसी व्यक्ति को प्रताडि़त करना या उससे क्रूरतापूर्ण व्यवहार करना उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
* किसी भी व्यक्ति को बगैर किसी कारण गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा।
* हर व्यक्ति को न्यायालय की शरण में जाने का अधिकार है।
* कोई भी व्यक्ति आरोप सिद्ध होने तक अपराधी नहीं माना जा सकता।
किसी भी व्यक्ति की निजता के साथ मनमानीपूर्वक खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
* हर व्यक्ति को अपने राज्य की सीमाओं के भीतर आवास बनाने या अन्यत्र जाने का अधिकार है।
* सभी को विदेश जाने या लौटकर अपने देश आने का अधिकार है।
* प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है। किसी को भी उसकी राष्ट्रीयता से वंचित नहीं किया जा सकता।
* पुरुषों और महिलाओं को विवाह करने और अपना परिवार बनाने का अधिकार है। हर महिला के मातृत्व के अधिकार की रक्षा जरूरी है, चाहे उसकी संतान की उत्पत्ति विवाह संबंधों से हुई हो या नहीं।
* परिवार समाज की बुनियादी इकाई हैं। उन्हेंसमाज और राज्य से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
* सभी को संपत्ति रखने का हक है। किसी को भी मनमानीपूर्वक उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
* सभी को निजी विचार और धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता है।
* सभी को अपने देश की सरकार में सहभागिता करने का हक है।
* सभी को काम और आराम करने का अधिकार है।
(वर्ष 1948 में जारी किए गए अंतरराष्ट्रीय घोषणा पत्र के अंश)
सभी मनुष्य अपने अधिकारों के लिए जन्मजात स्वतंत्र और समान हैं। घोषणापत्र में निर्धारित मानवाधिकार हर नस्ल, राष्ट्रीयता, धर्म और वर्ग के व्यक्ति के लिए समान हैं।
* हर मनुष्य को जीवनयापन करने, स्वतंत्र रहने और अपनी रक्षा करने का अधिकार है।
* कोई भी मनुष्य किसी अन्य व्यक्ति का दास नहीं है।
* किसी व्यक्ति को प्रताडि़त करना या उससे क्रूरतापूर्ण व्यवहार करना उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
* किसी भी व्यक्ति को बगैर किसी कारण गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा।
* हर व्यक्ति को न्यायालय की शरण में जाने का अधिकार है।
* कोई भी व्यक्ति आरोप सिद्ध होने तक अपराधी नहीं माना जा सकता।
किसी भी व्यक्ति की निजता के साथ मनमानीपूर्वक खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।
* हर व्यक्ति को अपने राज्य की सीमाओं के भीतर आवास बनाने या अन्यत्र जाने का अधिकार है।
* सभी को विदेश जाने या लौटकर अपने देश आने का अधिकार है।
* प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है। किसी को भी उसकी राष्ट्रीयता से वंचित नहीं किया जा सकता।
* पुरुषों और महिलाओं को विवाह करने और अपना परिवार बनाने का अधिकार है। हर महिला के मातृत्व के अधिकार की रक्षा जरूरी है, चाहे उसकी संतान की उत्पत्ति विवाह संबंधों से हुई हो या नहीं।
* परिवार समाज की बुनियादी इकाई हैं। उन्हेंसमाज और राज्य से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
* सभी को संपत्ति रखने का हक है। किसी को भी मनमानीपूर्वक उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता।
* सभी को निजी विचार और धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता है।
* सभी को अपने देश की सरकार में सहभागिता करने का हक है।
* सभी को काम और आराम करने का अधिकार है।
(वर्ष 1948 में जारी किए गए अंतरराष्ट्रीय घोषणा पत्र के अंश)
No comments:
Post a Comment