Friday, April 19, 2013

ये क्या हो रहा है?


जेल में कैदी फांसी लगा रहा है
दिल्ली काण्ड दुष्कर्मी नाड़े पर लटक रहा है
ये क्या हो रहा है?
सेक्स करने की उम्र 16 कर रहे है
शादी 18 पर हो रही है
ये क्या हो रहा है?


दुष्कर्मी हेलीकॉप्टर से भाग रहा है
फेसबुक का दोस्त अपहरण हत्या कर रहा है
ये क्या हो रहा है?

मंत्री संतरी पर टिप्पणी कर रहा है
जनता मंत्री पर टिप्पणी कर रही है
ये क्या हो रहा है?


पुलिस वकील से लड़ रही है
वकील पुलिस पर पत्थर फेंक रहे है
ये क्या हो रहा है?

डॉक्टर हड़ताल पर है
जनता डॉक्टर का काम कर रही है
ये क्या हो रहा है?

म्ंात्री गाड़ी बदल रहे है
जनता पर टैक्स बढ़ रहा है
ये क्या हो रहा है?

कोई मंत्री को घेर रहा है
तो कोई विधानसभा को घेर रहा है
ये क्या हो रहा है?

किसान कर्ज में डुब रहा है
विकास रिर्पोट कहती है
-देश तरक्की कर रहा है
ये क्या हो रहा है?

शेयर बाजार व्यापारीयों को सता रहा है
व्यापारी किसानों को सता रहा है
ये क्या हो रहा है?
टैªफिक रूल तोड़े तो
जुर्माना ज्यादा हो रहा है
आई पी एल हो रहा है
सटटा बाजार गर्म हो रहा है
ये क्या हो रहा है?

बुजदिल चला गया


एक और बुजदिल चला गया
दुनिया छोड़कर
वो हार गया
मान गया
अपनी हार

नही चाहा उसने जीवन को
नही चाहा उसने परिवार को
नही चाहा इस दोस्त यार को
जीना छोड़ कर
बुजदिली दिखा कर
छोड़ गया इस जहान को

अब कभी नहीं,
खट खट करेगी उसकी मशीन
कम्प्यूटर स्लेट कलम
किट- किट नहीं करेगीं।

अब नही बनेगा वो सिक्कों में पागल
अब नही गिरेगा वो किसी गढ्ढें में
अब नही मारेगा वो किसी में टक्कर
क्योंकी वो
छोड़ गया इस जहान को

सुना हो गया ये कमरा
कौन सुनेगा रेडियों पर कामेंट्री
कौन पहचानेगा मेरे हाथ को
कौन कहेगां चलो चाय पिते है।

कौन कहेगां सर एक बात कहू
कौन कहेगा मुझे अभी जोर से गाना गाना है।
कौन कहेगा क्या मैं मोटा ज्यादा हो गया हूं?
कौन कहेगा वो लड़की कैसी दिखती है।
एक बुजदिल दोस्त छोड़ गया

न जाने क्यों लोग आत्म हत्या करते है?
न जाने क्यों लोग अपनी हार मान लेते है?
न जाने क्यों ऐसा सोच लेते है?
न जाने क्यों छोड़ कर चले जाते है?

ऐ बुजदिल दोस्त मेरी याद आती है।
तेरा हाथ में हाथ डाल कर चला
हर काम में भाग लेना
आज फिर निंद उडी़ हुई है
दिल शांत हो गया है।

‘मुकेश‘ तेरी याद आती है।
तेरे साथ चाय याद आती है।

Saturday, March 24, 2012

एक दोपहर का आतंक

टी वी घर थी
बीवी घर पर थी
मै
फोन कही व्यस्त चल रहा है
एक मधुर आवाज़ के साथ
आप जिस नम्बर को डायल कर रहे है अभी वो व्यस्त है

टी वी वाले जोर से चिल्ला रहे है
कही मत जाये
आपको आगे दिखेयेगे
कैसे लगी पानी में आग
तो देखते रहिये
सबसे तेज खबर हमारे चैनल पर

घर के बाहर से लोग चिल्ला रहे है
बाहर आजाओ
बाहर आजाओ
भूकम्प आ रहा है
बाहर आजाओ

टीवी में फिर खबर चली
दिल्ली में भूकम्प
ब्रेकिंग न्यूज चल रही है
एंकर फिर आता है फिर वही दोहराता है
दिल्ली में भूकम्प
तो देखते रहिये
सबसे तेज खबर हमारे चैनल पर
मिलते है
एक छोटे से ब्रेक के बाद

करीब दो मिनट बाद फिर एंकर आता है
फिर कहता है
दिल्ली में भूकम्प
दिल्ली दहल उठी
भूकम्प ने फिर दहलाया दिल्ली को
सबसे बड़ी खबर

दुसरे चैनलो को खबर लग चुकी थी
यहाँ तो उससे भी तेज काम चल रहा है
एंकर के साथ साथ रिपोटर लगातार
आपनी राग आल्प रहा है
सबसे बड़ी खबर
आज की सबसे बड़ी खबर
दिल्ली में भूकम्प
भूकम्प के जटके फिर आ सकते है
जी हाँ

भूकम्प के जटके फिर आ सकते है
आप बने रहिये हमारे साथ
आपको दिखयेगे
भूकम्प के लाइव झटके
आप ये देख सकेगे सिर्फ और सिर्फ
हमारे चैनल पर

तीसरा चैनल और भी तेज निकला
चैनल में आपने
दो रिपोटरो को पकड़ा
और स्टूडियो में बहस का मजमा लगवा दिया
क्यों आते है भूकम्प
चैनल लगातार अपने साथ बने रहने के लिए राग आप कर रहे है
कोई नहीं कह रहा है
घर से बहार चले जाये
चैनल एंकर लगातर रिपोटर से पूछा रहे है
किसी की म्रत्यु की खबर आई है
शायद न्यूज वालो को इंतजार करना अच्छा नहीं लगता
एंकर के लिए अपने चैनल की टीआरपी का सवाल बन जाता है

ये खेल है टी आर पी का इसका जनजाल है
क्या करे आम जनता
ये टी वी है क्या जी का जंजाल ?
बीबी सही कहती है
टी वी है सिर्फ नाटक देखने के लिए
ये सब नाटक ही तो है
जीवन एक नाटक है
जो हर चैनल पूछता है की अभी तक
किसी के मरने की या घायल होने की खबर आई
क्या- क्या के दिखता है ये टी वी

Monday, January 23, 2012

फ़ोण्ट परिवर्तन


कृतिदेव०१० से यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र  


शुषा <=> यूनिकोड <=> शुषा फ़ोण्ट परिवर्तित्र 



कृतिदेव-010 <==> यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र 


कृतिदेव-010 => यूनिकोड एवं चाणक्य फ़ोण्ट परिवर्तित्र


आगरा फाण्ट से यूनिकोड परिवर्तित्र


चाणक्य <====> यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र

Saturday, January 14, 2012

मच्छर को मक्खी का पत्र


बढ़े भैया को प्रणाम 


आशा है की आप कुशल मंगल होगे यह भी सब ठीक है घर की देखभाल की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी है यहाँ के हालत कुछ अच्छे नहीं है चार दिन पहले सभी मच्छर और मक्खिं की एक मीटिंग बैठी थी उसमे यही मसले पर बात करनी थी की, राष्ट मंडल खेलो में तो सरकार को पैसे दे दिए थे जिसके कारण बच गए  तब तो कोई नहीं आया यहाँ से हटाने और दवा का छिडकाव करने के लिए,,,लेकिन सरकार गणतन्त्र दिवस के चक्कर में फिर से सफाई करवा रही है लेकिन अबकी पैसे भी नहीं जुट पाए है और न ही कोई सरकार की और से आश्वासन मिल है की हमें यहाँ से नहीं हटायेगे मीटिंग चल ही रही थी कि एक आदमी आया और उसने चलती मीटिंग में ही छिडकाव करना शुरू कर दिया जिसकी चपेट में बहुत से मक्खी और मच्छर आ गए  माँ और पिताजी को बुखार हो गया है और छोटे भैया भी बेरोजगार हो गये है कोकरोज लाला ने भैया को  काम से निकल दिया है कहत है की सरकार ने मच्छर नाशक दवा छिडक दी है जिसके कारण काम कुछ कम हो गया है कल हमारे घर में भी दवा की कुछ बुँदे आ गिरी थी जिसके कारण माँ और पिता जी और ज्यादा भी बीमार हो गये है
अरे भैया पिचले कूड़े दान वाले अंकल आज सुबह ही मिले थे वो बता रहे थे की, वहा तो कोई भी नहीं बचा है और जो बच गए है वो अपना घर छोड़ कर दूसरी जगह जा रहे है आपके भेजे हुए खून के दोनों पेकेट मिल गये थे एक माँ ने और एक पिता जी ने ले लिया है लेकिन, तबियत पर कुछ असर नहीं पड़ रहा है शायद आपने किसी कमजोर आदमी के घर में ढेर जमा रखा है भैया खून की बहुत जरूरत है जल्दी से कुछ और पैकिट भिजवा देना आगे वाली सडक पर रहने वाला आपका दोस्त बता रहा था की आपके यहाँ पर कुछ नहीं नालियां बन रही है क्या लगता है की, ये सब नालियों को गन्दा रखने का ठेका किसको मिलेगा? यदि आपके बाहरी दिल्ली वाले इलाके में कोई जगह खाली हो और आप कहे तो छोटे भैया को आपके पास भेज दूँ  कल कुछ बड़े मच्छर आये थे आते के साथ ही उन्होंने घर खाली करने के लिए बोल दिया है नहीं किया तो चार पैकिट खून माँगा है सिर्फ दस की महुलत दी है  और आगे की खबर ये है की अपने कूड़ेदान के सुखिमच्छर की लड़की नैना मच्छाराइन की शादी हो गई है अब वो यमुना  पार में चली गई है सुना है की यमुना भी गंदगी से पटी पड़ी है   यदि ऐसा है तो भैया आप भी जाकर देखना और हो सके तो अपने लिए जगह बनाकर हमें भी वाही बुला लेना   यहाँ का कोई भरोसा नहीं की कब क्या हो जाये  इसलिए जल्दी से खत लिखना  ख़ुशी की बात ये है की, भाभी माँ बनने वाली है और भाभी कह रही है की, आप जल्दी से आ जाओ 
आपकी छोटी बहन
मक्खी 

Tuesday, January 3, 2012

चुनाव में छोटे मेंढको का उदय


चुनावो से पहले बरसाती मेंढक बहार आ जाते है चुनावी समय में पुरानी मशीनो में फिर से तेल डाल दिया जाता है फिर खट खट कर छोटे मेंढको को छाप देती है  चुनाव होने के छह माह पूर्व ये मेंढक बाजार में अपनी आवाज निकलना शुरू करते है कुछ मेंढक राजनितिक पार्टियों के होते है, और कुछ चुनावो में मिलने वाले चंदे से अपना नाम चलते है ये साल में यदि कोई बड़ा त्यौहार हो या किसी राष्ट्रीय पर्व पर भी कभी- कभी दीखते है  कुछ पैसा कमाई करके वापिस बिल में चले जाते है बढ़े मेंढक पुरे साल भर इनको टिकने का मोका नहीं देते है 

राजनितिक पार्टिया भी छोटे मेंढको से अपना प्रचार करवाना बेहतर समझते है। इसके कई कारण होते है। 
लेकिन सबसे बड़ा कारण छोटे मेंढको की पंहुच आम आदमी के पास होती है। आम आदमी भी इस मेंढक की तरह ही पेपर (अख़बार) पढ़ते है। कुछ दिन राजनीती की गर्मी में हर कोई अपने हाथ सकने की सोचता है। चाहे उसका स्वरूप किसी भी तरह का हो सकता है। राजनेता से अपना काम छोटे मोटे काम निकलवाना हो या फ्री की शराब का मज़ा लेना हो।
बड़े मेंढक अपना बाजार जमाये हुए है। चुनाव आते ही मेंढको को खाने के लिए हरी और लाल घास राजनितिक पार्टियों से मिल जाती है। ये मेंढक बढ़े है। साल भर अपनी खुराक पार्टियों से लेते रहते है। बदले में उसकी टर टर भी बजा देते है। बड़े मेंढको ने अपनी पंहुच गाँव तक करने के लिए छोटे छोटे मेंढको में बाँट दिया है।  लेकिन ये छोटे छोटे मेंढको में भी पार्टी सोच विचार के विज्ञापन देते है। बरसाती मेंढको की पहुँच साल भर चलने वाले  छोटे छोटे मेंढको से भी ज्यादा  होती है जनता को ज्यादा प्रभावित करते है ये मेंढक ग्रामीण को अपना सा लगने वाला होता है।  देहाती भाषा का प्रयोग किया जाता है।  जिससे लोगो का जल्द ही विश्वास पात्र बन जाता है 
जल्द ही पांच राज्यों में चुनाव होने वाले है और यहाँ न जाने कितने बरसाती मेंढक आ गया है बाजार में दुकानों पर छोटे बड़े मेढको की भीड़ लगना शुरू हो गई है 

Tuesday, December 6, 2011

क्या फेसबुक पर भी सरकार हावी ?

"अब क्या फेसबुक पर भी सरकार हावी हो जाएगी ?  सरकार कुछ तस्वीरों के नाम पर बची कुची आवाजों को भी बंद कर देनी चाहती है ?"
युवाको अपनी बात रखने की आजादी शायद अब न रहे। टेलिकॉम मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने इंटरनेट कंपनियों से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोहम्मद पैगंबर से जुड़ी कथित अपमानजनक, गलत और भड़काने वाली सामग्रियों को हटाने के लिए कहा है। क्या अब गूगल ,फेसबुक ,मेल, टूयूटर सरकार की मर्जी से चलेगे ? कपिल सिब्बल का माना है की ये देश में अराजकता पैदा कर रहे है।

शायद अब कपिल जी को अपने कार्टूनों का पता चल गया है। इस लिए वो फेसबुक पर भी सेंसर लगवाना चाहते है लेकिन फेसबुक पर तो पहले से ही इसके लिए कार्य किया जा रहा है। एक और सेंसर की आवश्कता क्या है ? लगातार देश में हो रहे घोटालो को उजागर करने में फेसबुक की अहम भूमिका रही है ये भूमिका चाहे प्रत्यक्ष रूप से न रही हो, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से ये सभी खबरों को जनता तक आसानी से पहुंचा रहा है ।

मिडिया को सरकार अपने अनुरूप भोकने वाला बना लिया है। इस लिए मिडिया एक पक्ष की खबरे ही दिखता है। राजनीतिक पार्टिया खबरे अपने अनुसार चलवाती है। मिडिया में सेंसर का प्रवधान है इस लिए कुछ खबरों को दिखाया ही नहीं जाता है टी वी और अखबारों में जनता की आवाज़ नहीं पैसा बोलता है । जन्हा से पैसा मिलेगा वही खबर चलेगी ।

फेसबुक पर भड़काऊ तस्वीरें दिखाईं। सिब्बल ने पूछा कि इन तस्वीरों के बारे में उनकी क्या राय है? सिब्बल ने उनसे कहा कि भारत सरकार सेंसरशिप में विश्वास नहीं करती है लेकिन विभिन्न समुदायों की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाले और अन्य संवेदनशील मसलों को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता। चूंकि ये कंपनियां इन साइट्स को चलाती हैं इसलिए उन्हें इसे नियमित करना होगा।
इससे पहले 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अखबार पे प्रतिबंध लगाया था। उस समय भी मिडिया की इतनी पहुँच जनता तक नहीं थी और, सोसल साइट्स का तो नाम ओ निशान नहीं था फिर, भी इंदिरा गांधी ने जनता की आवाज़ को दबाने का भरसक प्रयास किया था ।
कंपनियों की दलील है कि इनमें से ज्यादातर कंटेंट यूजर्स की ओर से ही आता है इसलिए इन पर नियंत्रण रखना मुश्किल है और ऐसे कंटेंट के लिए कंपनियों के प्रबंधन को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। हां, किसी खास मामले में अगर कोई शिकायत आती है तो वे जरूर देखेंगे लेकिन आम तौर पर इन्हें नियंत्रित करने से इस माध्यम का इंटरऐक्टिव चरित्र ही नष्ट हो जाएगा।
कपिल सिब्बल तस्वीरों से नहीं, जनता के आन्दोलन से डर रहे है। जनता फेसबुक पर एक जुट हो रही है । आपस में संवाद बनती है और एक दुसरे के पक्ष को जानने की कोशिश करती है। युवाओ में फेसबुक का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है और आज का युवा जानना चाहता है की देश में क्या हो रहा है उसके साथी किस विषय पर क्या सोचते है?

यदि बात केवल कुछ तस्वीरों को लेकर है तो ठीक है लेकिन जब ये इससे ज्यादा प्रतिबंद करते है तो ये जनतंत्र की आवाज़ पर हमला है ।

जनता कुछ तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करती है तो ये उसका विरोध जताने का एक तरीका है और तस्वीरों के नाम पर यदि ये विचारो पर रोक लगते है तो ये ठीक नहीं है
कपिल सिब्बल जो इन जैसी तस्वीरों के कारण फेसबुक पर प्रतिबन्ध की बाते करते है----




 






(नोट -- ये सभी तस्वीरे गूगल और फेसबुक से ली गई है ) ये जनता है किसी को नहीं छोडती  है