Friday, April 19, 2013

बुजदिल चला गया


एक और बुजदिल चला गया
दुनिया छोड़कर
वो हार गया
मान गया
अपनी हार

नही चाहा उसने जीवन को
नही चाहा उसने परिवार को
नही चाहा इस दोस्त यार को
जीना छोड़ कर
बुजदिली दिखा कर
छोड़ गया इस जहान को

अब कभी नहीं,
खट खट करेगी उसकी मशीन
कम्प्यूटर स्लेट कलम
किट- किट नहीं करेगीं।

अब नही बनेगा वो सिक्कों में पागल
अब नही गिरेगा वो किसी गढ्ढें में
अब नही मारेगा वो किसी में टक्कर
क्योंकी वो
छोड़ गया इस जहान को

सुना हो गया ये कमरा
कौन सुनेगा रेडियों पर कामेंट्री
कौन पहचानेगा मेरे हाथ को
कौन कहेगां चलो चाय पिते है।

कौन कहेगां सर एक बात कहू
कौन कहेगा मुझे अभी जोर से गाना गाना है।
कौन कहेगा क्या मैं मोटा ज्यादा हो गया हूं?
कौन कहेगा वो लड़की कैसी दिखती है।
एक बुजदिल दोस्त छोड़ गया

न जाने क्यों लोग आत्म हत्या करते है?
न जाने क्यों लोग अपनी हार मान लेते है?
न जाने क्यों ऐसा सोच लेते है?
न जाने क्यों छोड़ कर चले जाते है?

ऐ बुजदिल दोस्त मेरी याद आती है।
तेरा हाथ में हाथ डाल कर चला
हर काम में भाग लेना
आज फिर निंद उडी़ हुई है
दिल शांत हो गया है।

‘मुकेश‘ तेरी याद आती है।
तेरे साथ चाय याद आती है।

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