टी वी घर थी
बीवी घर पर थी
मै
फोन कही व्यस्त चल रहा है
एक मधुर आवाज़ के साथ
आप जिस नम्बर को डायल कर रहे है अभी वो व्यस्त है
टी वी वाले जोर से चिल्ला रहे है
कही मत जाये
आपको आगे दिखेयेगे
कैसे लगी पानी में आग
तो देखते रहिये
सबसे तेज खबर हमारे चैनल पर
घर के बाहर से लोग चिल्ला रहे है
बाहर आजाओ
बाहर आजाओ
भूकम्प आ रहा है
बाहर आजाओ
टीवी में फिर खबर चली
दिल्ली में भूकम्प
ब्रेकिंग न्यूज चल रही है
एंकर फिर आता है फिर वही दोहराता है
दिल्ली में भूकम्प
तो देखते रहिये
सबसे तेज खबर हमारे चैनल पर
मिलते है
एक छोटे से ब्रेक के बाद
करीब दो मिनट बाद फिर एंकर आता है
फिर कहता है
दिल्ली में भूकम्प
दिल्ली दहल उठी
भूकम्प ने फिर दहलाया दिल्ली को
सबसे बड़ी खबर
दुसरे चैनलो को खबर लग चुकी थी
यहाँ तो उससे भी तेज काम चल रहा है
एंकर के साथ साथ रिपोटर लगातार
आपनी राग आल्प रहा है
सबसे बड़ी खबर
आज की सबसे बड़ी खबर
दिल्ली में भूकम्प
भूकम्प के जटके फिर आ सकते है
जी हाँ
भूकम्प के जटके फिर आ सकते है
आप बने रहिये हमारे साथ
आपको दिखयेगे
भूकम्प के लाइव झटके
आप ये देख सकेगे सिर्फ और सिर्फ
हमारे चैनल पर
तीसरा चैनल और भी तेज निकला
चैनल में आपने
दो रिपोटरो को पकड़ा
और स्टूडियो में बहस का मजमा लगवा दिया
क्यों आते है भूकम्प
चैनल लगातार अपने साथ बने रहने के लिए राग आप कर रहे है
कोई नहीं कह रहा है
घर से बहार चले जाये
चैनल एंकर लगातर रिपोटर से पूछा रहे है
किसी की म्रत्यु की खबर आई है
शायद न्यूज वालो को इंतजार करना अच्छा नहीं लगता
एंकर के लिए अपने चैनल की टीआरपी का सवाल बन जाता है
ये खेल है टी आर पी का इसका जनजाल है
क्या करे आम जनता
ये टी वी है क्या जी का जंजाल ?
बीबी सही कहती है
टी वी है सिर्फ नाटक देखने के लिए
ये सब नाटक ही तो है
जीवन एक नाटक है
जो हर चैनल पूछता है की अभी तक
किसी के मरने की या घायल होने की खबर आई
क्या- क्या के दिखता है ये टी वी
Saturday, March 24, 2012
Monday, January 23, 2012
फ़ोण्ट परिवर्तन
कृतिदेव०१० से यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र
शुषा <=> यूनिकोड <=> शुषा फ़ोण्ट परिवर्तित्र
कृतिदेव-010 <==> यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र
कृतिदेव-010 => यूनिकोड एवं चाणक्य फ़ोण्ट परिवर्तित्र
आगरा फाण्ट से यूनिकोड परिवर्तित्र
चाणक्य <====> यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र
Saturday, January 14, 2012
मच्छर को मक्खी का पत्र
बढ़े भैया को प्रणाम ।


अरे भैया पिचले कूड़े दान वाले अंकल आज सुबह ही मिले थे। वो बता रहे थे की, वहा तो कोई भी नहीं बचा है और जो बच गए है वो अपना घर छोड़ कर दूसरी जगह जा रहे है । आपके भेजे हुए खून के दोनों पेकेट मिल गये थे। एक माँ ने और एक पिता जी ने ले लिया है लेकिन, तबियत पर कुछ असर नहीं पड़ रहा है। शायद आपने किसी कमजोर आदमी के घर में ढेर जमा रखा है। भैया खून की बहुत जरूरत है जल्दी से कुछ और पैकिट भिजवा देना। आगे वाली सडक पर रहने वाला आपका दोस्त बता रहा था की आपके यहाँ पर कुछ नहीं नालियां बन रही है। क्या लगता है की, ये सब नालियों को गन्दा रखने का ठेका किसको मिलेगा? यदि आपके बाहरी दिल्ली वाले इलाके में कोई जगह खाली हो और आप कहे तो छोटे भैया को आपके पास भेज दूँ । कल कुछ बड़े मच्छर आये थे। आते के साथ ही उन्होंने घर खाली करने के लिए बोल दिया है नहीं किया तो चार पैकिट खून माँगा है । सिर्फ दस की महुलत दी है। और आगे की खबर ये है की अपने कूड़ेदान के सुखिमच्छर की लड़की नैना मच्छाराइन की शादी हो गई है अब वो यमुना पार में चली गई है सुना है की यमुना भी गंदगी से पटी पड़ी है । यदि ऐसा है तो भैया आप भी जाकर देखना और हो सके तो अपने लिए जगह बनाकर हमें भी वाही बुला लेना । यहाँ का कोई भरोसा नहीं की कब क्या हो जाये । इसलिए जल्दी से खत लिखना । ख़ुशी की बात ये है की, भाभी माँ बनने वाली है और भाभी कह रही है की, आप जल्दी से आ जाओ ।
आपकी छोटी बहन
मक्खी
Tuesday, January 3, 2012
चुनाव में छोटे मेंढको का उदय

राजनितिक पार्टिया भी छोटे मेंढको से अपना प्रचार करवाना बेहतर समझते है। इसके कई कारण होते है।
लेकिन सबसे बड़ा कारण छोटे मेंढको की पंहुच आम आदमी के पास होती है। आम आदमी भी इस मेंढक की तरह ही पेपर (अख़बार) पढ़ते है। कुछ दिन राजनीती की गर्मी में हर कोई अपने हाथ सकने की सोचता है। चाहे उसका स्वरूप किसी भी तरह का हो सकता है। राजनेता से अपना काम छोटे मोटे काम निकलवाना हो या फ्री की शराब का मज़ा लेना हो।
बड़े मेंढक अपना बाजार जमाये हुए है। चुनाव आते ही मेंढको को खाने के लिए हरी और लाल घास राजनितिक पार्टियों से मिल जाती है। ये मेंढक बढ़े है। साल भर अपनी खुराक पार्टियों से लेते रहते है। बदले में उसकी टर टर भी बजा देते है। बड़े मेंढको ने अपनी पंहुच गाँव तक करने के लिए छोटे छोटे मेंढको में बाँट दिया है। लेकिन ये छोटे छोटे मेंढको में भी पार्टी सोच विचार के विज्ञापन देते है। बरसाती मेंढको की पहुँच साल भर चलने वाले छोटे छोटे मेंढको से भी ज्यादा होती है। जनता को ज्यादा प्रभावित करते है। ये मेंढक ग्रामीण को अपना सा लगने वाला होता है। देहाती भाषा का प्रयोग किया जाता है। जिससे लोगो का जल्द ही विश्वास पात्र बन जाता है ।
जल्द ही पांच राज्यों में चुनाव होने वाले है और यहाँ न जाने कितने बरसाती मेंढक आ गया है बाजार में दुकानों पर छोटे बड़े मेढको की भीड़ लगना शुरू हो गई है ।
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