Saturday, October 22, 2011

मिडिया और चुनाव

मिडिया और चुनाव एक दूसरे के अभिन्न  पहलू है चुनावो से पहले नेता मिडिया के आगे - आगे होते है और मिडिया पीछे- पीछे। चुनाव के बाद स्थिति बदल जाती है। मिडिया आगे- आगे और नेता पीछे- पीछे होते है। नेता जनता के पास जाते है। तभी ध्यान रखते है की  कौन सा चैनल या पेपर कवर करने के लिए आया है। दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू माने जा सकते है। नेता बिना खबर नहीं और मिडिया बिना नेता का प्रचार नहीं।  राजनीति  मिडिया से होती है और मिडिया राजनीति से, इस बात को नकार नहीं जा सकता। 

ऐसा ही मामला सतना में सामने आया। जहाँ मिडिया को पांच-पांच सौ के नोट बांटे गए। मामला भाजपा के प्रमुख नेता लाल क्रष्ण अडवाणी की रथ यात्रा के दौरान का है। जहाँ अडवाणी की प्रेस वार्ता के लिए सम्मेलन रखा गया। जिसमे अडवाणी ने अपनी रथ यात्रा की जानकारी पत्रकारों को दी। सम्मेलन में भाजपा के कार्यकर्ता ने लिफाफों में पांच-पांच सो के नोट रख कर पत्रकारों के बाँट दिए। जब पत्रकारों को  इस बात का पता चला तो कुछ पत्रकारों ने पैसे रखे लिफाफे लेने से मना कर दिया, और वापिस लोटा दिया। कुछ पत्रकार लिफाफा लेकर चले भी गए। मामले ने तूल पकड़ा और कुछ पेपर और चैनलों ने दिखा दिया और आम जनता में उजागर हो गया।  


मिडिया को चौथा स्तम्भ माना जाता है। मिडिया अपने को स्वतंत्र रखने में विश्वास रखती है । एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा की मिडिया को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। मिडिया एक प्राइवेट (निजी) सेक्टर है और ये लोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए।   हालाकिं अभी इस मुद्दे पर गिल्ड में भी मतभेद बना हुआ है।   
मिडिया अपने को स्वतंत्र कहती है लेकिन, इसमें राजनीतिक पार्टियों का पैसा लगा हुआ है और कोई भी चैनल नहीं चाहेगां की, अपनी आमदनी को कम किया जाये।  लोकपाल के दायरे में आने  से मिडिया के सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करना पड़ेगां।  जिससे उसमे लगी हुई  पूंजी का भी हिसाब देना पड़ेगा।  

मिडिया एवं अन्य एजंसियों द्वारा चुनाव से पहले  करे जाने वाले ओपिनियन पोल व् चुनाव उपरांत करे जाने वाले एक्जिट पोल अब चुनावो को प्रभावित नहीं कर पाएगें। ऐसे सर्वेक्षणों के प्रकाशन एवं प्रसारण के सम्बन्ध में कड़े दिशा - निर्देश चुनाव आयोग ने 15वीं लोकसभा के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा 17  फरवरी 2009  को जारी किए थे।  इनके तहत की चरणों के लोकसभा / विधान सभा चुनाव होने की स्थिति में ओपिनियन पोल / एक्जिट पोल प्रकाशन एवं प्रसारण पर प्रतिबन्ध पहले चरण के मतदान समाप्ति के 48  घंटे पूर्व प्रारम्भ होगा तथा अंतिम चरण के मतदान की समाप्ति तक यह जारी रहेगा। एक ही चरण के मतदान की स्थिति में भी यह प्रतिबन्ध मतदान होने के लिए निर्धारित समय से 48  घंटे पूर्व लागू होगा था। मतदान की समाप्ति तक लागू रहेगा। चुनाव आयोग के यह  दिशा - निर्देश प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मिडिया सहित अन्य मिडिया पर भी लागू होगें।  

ओपिनियन पोल व् एक्जिट पोल के परिणामो के प्रकाशन / प्रसारण के सम्बन्ध में ऐसे ही दिशा - निर्देश चुनाव आयोग ने पहले 20 जनवरी 1998 को जारी किए थे जिनमे इनके प्रकाशन एवं प्रसारण को मतदान से पहले प्रचार बंद होने के समय से मतदान होने के आधे घंटे बाद तक ले किए प्रतिबंधित किया गया था। चुनाव आयोग के उन  दिशा - निर्देशों को उच्चतम न्यायालय में चुनोती दी गई थी न्यायालय में इस मामले पर सुनवाई के दोरान ही चुनाव आयोग ने अपने दिशा - निर्देश सितम्बर  1999 में वापिस ले किए थे।    
चुनाव आयोग ने संदिग्ध लेनदेन और धन के संदेहास्पद प्रवाह के बारे में डेटाबेस तैयार करने के लिए  पांच राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को हाल ही में दिशा-निर्देश जारी किये। चुनाव आयोग का मानना है की मिडिया का प्रयोग जनता को भ्रमित करने के लिए किया जाता है। 

मिडिया अब अन्ना की टीम का पीछा कर रही है हिसार में जो हुआ है। उसे अन्ना फेक्टर नहीं कहा जा सकता लेकिन, अरविन्द केजरीवाल चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे है। अन्ना की टीम हिसार को अपनी बड़ी जीत बता रहे है लेकिन, मिडिया मसाला लगा- लगा कर खबर को दिखाती रही।   

सभी चैनल और अखबार राजनितिक पार्टियों की छत्र - छाया से ही चलते है।  यही छत्र - छाया खबरों को प्रभावित करती है प्रभावित करने का तरीका अलग - अलग हो सकता है जैसे की भ्रष्ट व्यक्ति के बारे में उसकी कमजोरी को उजागर ना करना। उसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए उसके पक्ष में खबरे दिखाना या अख़बार में छापना। जिसके कारण आम आदमी जो मिडिया को सही मानकर वोट करता है और एक घुसखोर और भ्रष्ट व्यक्ति को वोट देकर नेता बना देते है। कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने लगतार प्राइम टाइम में अपना विज्ञापन चलवाया। चुनाव दूर है लेकिन, टी वी पर चल रहा विज्ञापन लोगो को भ्रमित करने के लिए काफी है।  
मिडिया अपने को पाक छवीं साबित करने पर तुला हुआ है। लेकिन पिछले कुछ समय में हुई घटनाओ से लगता है की, अब मिडिया का डब्बा गोल होने की कगार पर खड़ा हुआ है। 

Monday, October 17, 2011

बाजार का दबाव या फिर ध्यान नहीं देगें हम - जनसत्ता





बाजार का दबाव में हर चीज  जल्दी में हो रही है टी वी पे कई बार  गलत टिगर चलते देखा है चाहे वो टॉप का हो  या ब्रेकिंग न्यूज का हो . टी आर पी का खेल होने के  कारण गलती होती रहती है ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है लेकिन जब अखबारों में इसी गलतिय होती है तो, हैरानी होती है गलती भी छोटी- बड़ी कोई  भी हो,  गलती तो गलती होती है
जनसत्ता  अखबारों के मामले में जाना माना अख़बार है ये ज्यादातर लेख विचार और सम्पादकीय के लिए पढ़ा जाता है  लेकिन अख़बार के  पहले  पेज पर ही पढ़ते ही गलतिया नजर में आती है तो पेपर का  स्तर गिरते नजर आता है पिछले कुछ दिनों की कुछ गलतिया जो जनसत्ता ने की है
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अक्तूबर  पेज - 3
शीर्षक - तुगलकाबाद गांव को बचाने की खातिर ............तेज  
में तुगलकाबाद गांव तो काफी पहसे से बसा हुआ है - पहले से
इसी में दूसरी गलती (परिसीमन में बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट चार लोकसभा सीटमों में बंट गई) -  सीटो में

10 अक्तूबर  पेज - 1
शीर्षक - गुपचुप तरीके से गोपालगढ़ पहुंचे राहुल
राहुल गाँधी  ने भट्टा  - पारसौल की तरह रविवार को गोपालगढ़ में अचानक पहुंच कर अपनी कार्यशैली को एक बार फिर दर्शा दिया 
ये पेपर का फोर्मेट( स्टाइल ) हो सकता है इस लिए इसे गलती नहीं कह सकते है

10 अक्तूबर  पेज - 3
शीर्षक - स्वागत समारोह
प्रदेश
इसमें गलती नहीं कहा जा सकता लेकिन ये लगता गलती जैसा ही है क्यों की प्रदेश में को बड़ा कर दिया है और प्र के को सामान्य में छोड़ दिया है जिससे ये आधा फ नजर आ रहा है
 
10 अक्तूबर  पेज - 4
शीर्षक - जंगपूरा विधान सभा क्षेत्र में ..............राजनीति
........
अतिरिक्त आयुक्त मुख्य अभियंता फिरोज , उपयुक्त   निगम के कई अधिकारियो के आलावा क्षेत्र के पार्षद ............ - और निगम
 
10 अक्तूबर  पेज - 5
शीर्षक -  दरौंदा उपचुनाव के लिए सभी ..................
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है माजा जा रहा है - माना
इसी में आगे

कांग्रेस  ने डा कलिका शरण सिंह - डॉ
ये पेपर का फोर्मेट( स्टाइल ) हो सकता है इस लिए इसे गलती नहीं कह सकते है

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अक्तूबर  पेज - 5
शीर्षक - गुमराह करने वाले विज्ञापनों ...........
गुमराह करने वाले विज्ञापनों से निपटते है दुनिया में करीब 30  से 40  ऐसे देश है जहां स्वनियमन है कछ देशो में कार्यकारी निकाय या व्यापार आयोग है - कुछ

12
अक्तूबर  पेज - 1
शीर्षक -स्वच्छ राजनीति और सुशासन .............
तो उन्होंने उसे भी नकार दिया । तब उन्हेंम सफेद रंग का अंग वस्त्र भेंट किया गया  - यहाँ पर अधिक लगा दिया है 
 
12
अक्तूबर  पेज - 1
शीर्षक - जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं : पाक
अनन्य  अधिकार




 
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अक्तूबर  पेज - 4
शीर्षक - मायावती के गृह जिले में लुटेरो का राज, आम लोग दहशत में
इस खबर में  सात अप्रैल , 11 अप्रैलएक अगस्त, 11  अगस्त ,   जैसे शब्द है कही दिनांक संख्या में और कही हिंदी के शब्दों में
नोट - ये पेपर का फोर्मेट( स्टाइल ) हो सकता है इसलिए इसे पूर्णत गलती नहीं कह सकते है

17
अक्तूबर  पेज - 1
शीर्षक - न्यूज चैनलों की .................खाका

 वतर्मान = वर्तमान
     निषत=  निश्चित
 
बचकाना होग = बचकाना होगा
 
मंत्रलय = मंत्रालय
 
घंघे = धंधे
  …. =प्रतीक
और कुछ ऐसे शब्द है जो मंगल फॉण्ट में नहीं लिख सका

Wednesday, October 12, 2011

राजस्थान की राजनीति का भविष्य क्या ??

सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने कांग्रेस व भाजपा पर साथ साथ हमला किया आखिरकार नई पार्टी बनाने के संकेत किरोड़ी लाल मीणा ने दे दिए है मीन भगवान मंदिर मीणा सीमला पर दौसा जिले के विभिन्न जगहों से आई पदयात्राओं के समागम पर हुए कार्यक्रम में दौसा सांसद किरोड़ीलाल मीणा ने नए दल के गठन के संकेत दिए। अब राजस्थान में एक और पार्टी तैयार हो रही है कुछ विधायक जो अभी तक बी. एस. पी. के साथ थे शायद अब न रहे।

राजस्थान में भरतपुर कांड को लेकर सरकार कटघड़े में कड़ी हुई है गहलोत ने भरतपुर के गोपालगढ़ मामले के साथ भंवरी देवी का मामला सरकार को घेरे हुए है राजस्थान के (कांग्रेस) मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भरतपुर के गोपालगढ़ मामले में दौसा सांसद किरोड़ीलाल मीणा को राजनीति हद में रहने को कहाजनता को भ्रमित करने के काम को छोड़कर लोगों में भाईचारा और शान्ति स्थापित करने का काम करें  कांग्रेस अपना ठीकरा दुसरो पर फोड़ने पर लगी हुई है


किरोड़ी लाल मीणा का चुनावी सफर भाजपा के साथ 1980 में शुरु हुआ। पहली बार मीणा दौसा के महुवा क्षेत्र से चुनाव लड़े। जिसमे 130 वोटो से हार गये। ये हार मीणा ने नहीं स्वीकार की। कोर्ट में कैस डाला और जिसमे मीणा विजयी घोषित किये गये। लेकिन कोर्ट के फैसले में समय ज्यादा लगा और एक चुनाव का कार्य काल लगभग समाप्ति की ओर था। मीणा ने दूसरा चुनाव सवाई माधोपुर से लोक सभा के लिए लड़ा। लोकसभा चुनाव में भी हार गये। लेकिन, मीणा हार मानने वालो में से नहीं है फिर विधान सभा का चुनाव महुवा क्षेत्र से चुनाव लड़े। जिसमे पहली जीत हासिल हुई।

सवाई माधोपुर से लोकसभा का चुनाव जीता। किरोड़ी ने अपनी पहचान एक किसान के बेटे के रूप में बनाई। लेकिन, ये छवि ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी। लगातार दो विधान सभा चुनाव हारे।  दोनों हार के बाद भी मीणा चुप नहीं बैठे। अपने क्षेत्र में लगातार अपनी शाखा बनाने में लगे रहे। जिसका परिणाम भी मिला जल्दी ही मिल गया। दौसा जिला प्रमुख चुनाव में निर्विरोध जीत गये। इसके बाद विधानसभा सवाई माधोपुर क्षेत्र से चुनाव में जीत हासिल की। मीणा शुरु से ही भाजपा का टिकट पर जीतते आये है।
 
2007 में हुए विधान सभा चुनाव में भाजपा के टिकटों को लेकर पार्टी से खट पट हो गई। यहा से भाजपा का साथ छोड़ दिया। टोडाभीम से विधान सभा का निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए और जीत कर ही दम लिया। 2007 के लोक सभा चुनावो में दौसा जिले में फिर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए यहाँ पर एक लाख से अधिक वोटो से जीते।  इस तरह की चुनावी जीतो से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी परेशान हो उठी है। जले पर नमक छिडकने का काम गोलमा देवी (किरोड़ी लाल की पत्नी ( ने कर दिया। गोलमा देवी ने महुवा क्षेत्र से विधान सभा का चुना जीत लिया। राजस्थान सरकार ने गोलमा देवी को खादी राज्यमंत्री का पद दिया।

अन्ना हजारे दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन किया। किरोड़ी लाल मीणा ने अपना डेरा जयपुर में लगा दिया। राजस्थान सरकार की खादी राज्यमंत्री गोलमा देवी अपने सांसद पति डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के साथ धरने पर बैठ गई। राज्यमंत्री के धरने पर बैठने से राज्य सरकार की स्थिति हास्यास्पद हो गई। गहलोत सरकार ने गोलमा देवी से इस्तीफे की मांग की गई। भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के खिलाफ वे मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज भेज दिया। लेकिन, सरकार में स्वीकार नहीं हुआ। कांग्रेस सरकार ने दोनों मंत्रियो को रोकने के ली जी जान लगा दी सांसद मीणा को सरकार ने उन्हें एक दिन पूर्व ही गिरफ्तार कर जिला बंद कर दिया। मीणा को आदिवासियों की बदहाली को लेकर उदयपुर में रैली नहीं करने दी गई लेकिन राज्य मंत्री और सांसद ने आदिवासियों से संबंधित अपनी मांगें पूरी होने तक धरना जारी रखने का संकल्प जताया। दौसा, करौली, सवाई माधोपुर और अलवर जिलों में उनके समर्थकों ने रैली निकालकर विरोध जताया।

राज्यमंत्री और सांसद के धरने पर बैठने के बाद राजधानी जयपुर सहित प्रदेश के कई इलाकों में तनाव के हालात पैदा हो गए। किरोड़ी लाल लगातार किसानो के बैठक कर रहे है गाँव गाँव में जन सभाए कर रहे है  राजस्थान में बिजली और जल समस्या पर दौसा दे रहे हैसियासत का खेल भरतपुर के गोपालगढ़ से ही शुरू कर दिया है। भरतपुर के पूर्व सांसद विश्वेंद्र सिंह के साथ मिल कर एक जान सभा में मीणा ने कहा  इस कांड की निष्पक्ष जांच नहीं कराई गई तो जेल भरो आंदोलन शुरू किया जाएगा। ये सभा अलवर के मेव समाज की और से की गई इससे साफ होता है की अलवर के मेव जाति के वोट मीणा को ही मिले वाले है।

राजनीती के क्षेत्र में बहुत ज्यादा फेर बदल तो नहीं कहा जा सकेगा। लेकिन, कुछ खास जगहों पर तो मीणा आपनी चव्वनी चला सकता है। यदि राजनीती के बाजार में 20 सीटो पर कब्ज़ा कर लिया तो मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में सामना करेगें। दोनों ही पार्टिया अपनी सरकार बनाने के लिए इसका ऑफर नहीं ठुकरा सकेगीं। मीणा का क्षेत्र मुख्य रूप से माने तोदौसा, सवाई माधोपुर, भरतपुर अलवर है। इसके अतिरिक्त दक्षिणी राजस्थान में भी कुछ सीटों पर कब्ज़ा जमा सकते है विधान सभा के चुनावो में भरी फेर बदलाव दिखा जहाँ पिछली बार भाजपा की जितनी सीटे थी इस चुनाव में कांग्रेस की निकली उत्तर पूर्वी राजस्थान के वोटो से विधान सभा सीटे पर असर पड़ा।

 
बालाजी पर हुई सभा में सांसद डॉक्टर किरोड़ीलाल मीणा ने कहा "किसानों के साथ दोनों पार्टियों ने छल किया है। किसानों को जब खाद बिजली की जरूरत होती है, तब सरकार खाद, तेल सहित अन्य सामानो के भाव बढ़ा देती है और अनाज उत्पादन के समय अनाजों की कीमत कम कर देती है।" गहलोत सरकार पर ईशारा कर सासंद ने कहा कि गहलोत सरकार हत्यारी सरकार है। इस पर किसानो को सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए तैयार कर रहे है। लखेरा समाज समिति की ओर से राज्यस्तरीय प्रतिभावान छात्र-छात्रा सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि शिक्षा से ही समाज व देश की तरक्की संभव है। बालिका शिक्षा को बढ़ावा दें।

क्या किरोड़ी लाल मीणा तीसरी पार्टी खड़ी कर पायेंगें राजस्थान में तीसरी पार्टी का समर्थन किसको फायदा करता है और किसको नुकसान? ये तो आने वाले समय में ही पता लगेगा तब तक के लिए राजस्थान की सियासत में ये एक बड़ा सवाल बना हुआ है राजस्थान की राजनीति में क्या कुछ बदलाव आएगा भविष्य में ये सवाल है और, ये सवाल साल 2013 के अंत तक ही बने रहेगें