मिडिया और चुनाव एक दूसरे के अभिन्न पहलू है चुनावो से पहले नेता मिडिया के आगे - आगे होते है और मिडिया पीछे- पीछे। चुनाव के बाद स्थिति बदल जाती है। मिडिया आगे- आगे और नेता पीछे- पीछे होते है। नेता जनता के पास जाते है। तभी ध्यान रखते है की कौन सा चैनल या पेपर कवर करने के लिए आया है। दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू माने जा सकते है। नेता बिना खबर नहीं और मिडिया बिना नेता का प्रचार नहीं। राजनीति मिडिया से होती है और मिडिया राजनीति से, इस बात को नकार नहीं जा सकता।
ऐसा ही मामला सतना में सामने आया। जहाँ मिडिया को पांच-पांच सौ के नोट बांटे गए। मामला भाजपा के प्रमुख नेता लाल क्रष्ण अडवाणी की रथ यात्रा के दौरान का है। जहाँ अडवाणी की प्रेस वार्ता के लिए सम्मेलन रखा गया। जिसमे अडवाणी ने अपनी रथ यात्रा की जानकारी पत्रकारों को दी। सम्मेलन में भाजपा के कार्यकर्ता ने लिफाफों में पांच-पांच सो के नोट रख कर पत्रकारों के बाँट दिए। जब पत्रकारों को इस बात का पता चला तो कुछ पत्रकारों ने पैसे रखे लिफाफे लेने से मना कर दिया, और वापिस लोटा दिया। कुछ पत्रकार लिफाफा लेकर चले भी गए। मामले ने तूल पकड़ा और कुछ पेपर और चैनलों ने दिखा दिया और आम जनता में उजागर हो गया।
मिडिया को चौथा स्तम्भ माना जाता है। मिडिया अपने को स्वतंत्र रखने में विश्वास रखती है । एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा की मिडिया को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। मिडिया एक प्राइवेट (निजी) सेक्टर है और ये लोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए। हालाकिं अभी इस मुद्दे पर गिल्ड में भी मतभेद बना हुआ है।
मिडिया अपने को स्वतंत्र कहती है लेकिन, इसमें राजनीतिक पार्टियों का पैसा लगा हुआ है और कोई भी चैनल नहीं चाहेगां की, अपनी आमदनी को कम किया जाये। लोकपाल के दायरे में आने से मिडिया के सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करना पड़ेगां। जिससे उसमे लगी हुई पूंजी का भी हिसाब देना पड़ेगा।
मिडिया एवं अन्य एजंसियों द्वारा चुनाव से पहले करे जाने वाले ओपिनियन पोल व् चुनाव उपरांत करे जाने वाले एक्जिट पोल अब चुनावो को प्रभावित नहीं कर पाएगें। ऐसे सर्वेक्षणों के प्रकाशन एवं प्रसारण के सम्बन्ध में कड़े दिशा - निर्देश चुनाव आयोग ने 15वीं लोकसभा के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा 17 फरवरी 2009 को जारी किए थे। इनके तहत की चरणों के लोकसभा / विधान सभा चुनाव होने की स्थिति में ओपिनियन पोल / एक्जिट पोल प्रकाशन एवं प्रसारण पर प्रतिबन्ध पहले चरण के मतदान समाप्ति के 48 घंटे पूर्व प्रारम्भ होगा तथा अंतिम चरण के मतदान की समाप्ति तक यह जारी रहेगा। एक ही चरण के मतदान की स्थिति में भी यह प्रतिबन्ध मतदान होने के लिए निर्धारित समय से 48 घंटे पूर्व लागू होगा था। मतदान की समाप्ति तक लागू रहेगा। चुनाव आयोग के यह दिशा - निर्देश प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मिडिया सहित अन्य मिडिया पर भी लागू होगें।
ओपिनियन पोल व् एक्जिट पोल के परिणामो के प्रकाशन / प्रसारण के सम्बन्ध में ऐसे ही दिशा - निर्देश चुनाव आयोग ने पहले 20 जनवरी 1998 को जारी किए थे जिनमे इनके प्रकाशन एवं प्रसारण को मतदान से पहले प्रचार बंद होने के समय से मतदान होने के आधे घंटे बाद तक ले किए प्रतिबंधित किया गया था। चुनाव आयोग के उन दिशा - निर्देशों को उच्चतम न्यायालय में चुनोती दी गई थी न्यायालय में इस मामले पर सुनवाई के दोरान ही चुनाव आयोग ने अपने दिशा - निर्देश सितम्बर 1999 में वापिस ले किए थे।
चुनाव आयोग ने संदिग्ध लेनदेन और धन के संदेहास्पद प्रवाह के बारे में डेटाबेस तैयार करने के लिए पांच राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को हाल ही में दिशा-निर्देश जारी किये। चुनाव आयोग का मानना है की मिडिया का प्रयोग जनता को भ्रमित करने के लिए किया जाता है।
मिडिया अब अन्ना की टीम का पीछा कर रही है हिसार में जो हुआ है। उसे अन्ना फेक्टर नहीं कहा जा सकता लेकिन, अरविन्द केजरीवाल चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे है। अन्ना की टीम हिसार को अपनी बड़ी जीत बता रहे है लेकिन, मिडिया मसाला लगा- लगा कर खबर को दिखाती रही।
सभी चैनल और अखबार राजनितिक पार्टियों की छत्र - छाया से ही चलते है। यही छत्र - छाया खबरों को प्रभावित करती है प्रभावित करने का तरीका अलग - अलग हो सकता है जैसे की भ्रष्ट व्यक्ति के बारे में उसकी कमजोरी को उजागर ना करना। उसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए उसके पक्ष में खबरे दिखाना या अख़बार में छापना। जिसके कारण आम आदमी जो मिडिया को सही मानकर वोट करता है और एक घुसखोर और भ्रष्ट व्यक्ति को वोट देकर नेता बना देते है। कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने लगतार प्राइम टाइम में अपना विज्ञापन चलवाया। चुनाव दूर है लेकिन, टी वी पर चल रहा विज्ञापन लोगो को भ्रमित करने के लिए काफी है।
मिडिया अपने को पाक छवीं साबित करने पर तुला हुआ है। लेकिन पिछले कुछ समय में हुई घटनाओ से लगता है की, अब मिडिया का डब्बा गोल होने की कगार पर खड़ा हुआ है।
ऐसा ही मामला सतना में सामने आया। जहाँ मिडिया को पांच-पांच सौ के नोट बांटे गए। मामला भाजपा के प्रमुख नेता लाल क्रष्ण अडवाणी की रथ यात्रा के दौरान का है। जहाँ अडवाणी की प्रेस वार्ता के लिए सम्मेलन रखा गया। जिसमे अडवाणी ने अपनी रथ यात्रा की जानकारी पत्रकारों को दी। सम्मेलन में भाजपा के कार्यकर्ता ने लिफाफों में पांच-पांच सो के नोट रख कर पत्रकारों के बाँट दिए। जब पत्रकारों को इस बात का पता चला तो कुछ पत्रकारों ने पैसे रखे लिफाफे लेने से मना कर दिया, और वापिस लोटा दिया। कुछ पत्रकार लिफाफा लेकर चले भी गए। मामले ने तूल पकड़ा और कुछ पेपर और चैनलों ने दिखा दिया और आम जनता में उजागर हो गया।
मिडिया को चौथा स्तम्भ माना जाता है। मिडिया अपने को स्वतंत्र रखने में विश्वास रखती है । एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा की मिडिया को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। मिडिया एक प्राइवेट (निजी) सेक्टर है और ये लोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए। हालाकिं अभी इस मुद्दे पर गिल्ड में भी मतभेद बना हुआ है।
मिडिया अपने को स्वतंत्र कहती है लेकिन, इसमें राजनीतिक पार्टियों का पैसा लगा हुआ है और कोई भी चैनल नहीं चाहेगां की, अपनी आमदनी को कम किया जाये। लोकपाल के दायरे में आने से मिडिया के सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करना पड़ेगां। जिससे उसमे लगी हुई पूंजी का भी हिसाब देना पड़ेगा।
मिडिया एवं अन्य एजंसियों द्वारा चुनाव से पहले करे जाने वाले ओपिनियन पोल व् चुनाव उपरांत करे जाने वाले एक्जिट पोल अब चुनावो को प्रभावित नहीं कर पाएगें। ऐसे सर्वेक्षणों के प्रकाशन एवं प्रसारण के सम्बन्ध में कड़े दिशा - निर्देश चुनाव आयोग ने 15वीं लोकसभा के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा 17 फरवरी 2009 को जारी किए थे। इनके तहत की चरणों के लोकसभा / विधान सभा चुनाव होने की स्थिति में ओपिनियन पोल / एक्जिट पोल प्रकाशन एवं प्रसारण पर प्रतिबन्ध पहले चरण के मतदान समाप्ति के 48 घंटे पूर्व प्रारम्भ होगा तथा अंतिम चरण के मतदान की समाप्ति तक यह जारी रहेगा। एक ही चरण के मतदान की स्थिति में भी यह प्रतिबन्ध मतदान होने के लिए निर्धारित समय से 48 घंटे पूर्व लागू होगा था। मतदान की समाप्ति तक लागू रहेगा। चुनाव आयोग के यह दिशा - निर्देश प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मिडिया सहित अन्य मिडिया पर भी लागू होगें।
ओपिनियन पोल व् एक्जिट पोल के परिणामो के प्रकाशन / प्रसारण के सम्बन्ध में ऐसे ही दिशा - निर्देश चुनाव आयोग ने पहले 20 जनवरी 1998 को जारी किए थे जिनमे इनके प्रकाशन एवं प्रसारण को मतदान से पहले प्रचार बंद होने के समय से मतदान होने के आधे घंटे बाद तक ले किए प्रतिबंधित किया गया था। चुनाव आयोग के उन दिशा - निर्देशों को उच्चतम न्यायालय में चुनोती दी गई थी न्यायालय में इस मामले पर सुनवाई के दोरान ही चुनाव आयोग ने अपने दिशा - निर्देश सितम्बर 1999 में वापिस ले किए थे।
चुनाव आयोग ने संदिग्ध लेनदेन और धन के संदेहास्पद प्रवाह के बारे में डेटाबेस तैयार करने के लिए पांच राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को हाल ही में दिशा-निर्देश जारी किये। चुनाव आयोग का मानना है की मिडिया का प्रयोग जनता को भ्रमित करने के लिए किया जाता है।
मिडिया अब अन्ना की टीम का पीछा कर रही है हिसार में जो हुआ है। उसे अन्ना फेक्टर नहीं कहा जा सकता लेकिन, अरविन्द केजरीवाल चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे है। अन्ना की टीम हिसार को अपनी बड़ी जीत बता रहे है लेकिन, मिडिया मसाला लगा- लगा कर खबर को दिखाती रही।
सभी चैनल और अखबार राजनितिक पार्टियों की छत्र - छाया से ही चलते है। यही छत्र - छाया खबरों को प्रभावित करती है प्रभावित करने का तरीका अलग - अलग हो सकता है जैसे की भ्रष्ट व्यक्ति के बारे में उसकी कमजोरी को उजागर ना करना। उसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए उसके पक्ष में खबरे दिखाना या अख़बार में छापना। जिसके कारण आम आदमी जो मिडिया को सही मानकर वोट करता है और एक घुसखोर और भ्रष्ट व्यक्ति को वोट देकर नेता बना देते है। कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने लगतार प्राइम टाइम में अपना विज्ञापन चलवाया। चुनाव दूर है लेकिन, टी वी पर चल रहा विज्ञापन लोगो को भ्रमित करने के लिए काफी है।
मिडिया अपने को पाक छवीं साबित करने पर तुला हुआ है। लेकिन पिछले कुछ समय में हुई घटनाओ से लगता है की, अब मिडिया का डब्बा गोल होने की कगार पर खड़ा हुआ है।