Monday, January 23, 2012

फ़ोण्ट परिवर्तन


कृतिदेव०१० से यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र  


शुषा <=> यूनिकोड <=> शुषा फ़ोण्ट परिवर्तित्र 



कृतिदेव-010 <==> यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र 


कृतिदेव-010 => यूनिकोड एवं चाणक्य फ़ोण्ट परिवर्तित्र


आगरा फाण्ट से यूनिकोड परिवर्तित्र


चाणक्य <====> यूनिकोड फ़ोण्ट परिवर्तित्र

Saturday, January 14, 2012

मच्छर को मक्खी का पत्र


बढ़े भैया को प्रणाम 


आशा है की आप कुशल मंगल होगे यह भी सब ठीक है घर की देखभाल की जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी है यहाँ के हालत कुछ अच्छे नहीं है चार दिन पहले सभी मच्छर और मक्खिं की एक मीटिंग बैठी थी उसमे यही मसले पर बात करनी थी की, राष्ट मंडल खेलो में तो सरकार को पैसे दे दिए थे जिसके कारण बच गए  तब तो कोई नहीं आया यहाँ से हटाने और दवा का छिडकाव करने के लिए,,,लेकिन सरकार गणतन्त्र दिवस के चक्कर में फिर से सफाई करवा रही है लेकिन अबकी पैसे भी नहीं जुट पाए है और न ही कोई सरकार की और से आश्वासन मिल है की हमें यहाँ से नहीं हटायेगे मीटिंग चल ही रही थी कि एक आदमी आया और उसने चलती मीटिंग में ही छिडकाव करना शुरू कर दिया जिसकी चपेट में बहुत से मक्खी और मच्छर आ गए  माँ और पिताजी को बुखार हो गया है और छोटे भैया भी बेरोजगार हो गये है कोकरोज लाला ने भैया को  काम से निकल दिया है कहत है की सरकार ने मच्छर नाशक दवा छिडक दी है जिसके कारण काम कुछ कम हो गया है कल हमारे घर में भी दवा की कुछ बुँदे आ गिरी थी जिसके कारण माँ और पिता जी और ज्यादा भी बीमार हो गये है
अरे भैया पिचले कूड़े दान वाले अंकल आज सुबह ही मिले थे वो बता रहे थे की, वहा तो कोई भी नहीं बचा है और जो बच गए है वो अपना घर छोड़ कर दूसरी जगह जा रहे है आपके भेजे हुए खून के दोनों पेकेट मिल गये थे एक माँ ने और एक पिता जी ने ले लिया है लेकिन, तबियत पर कुछ असर नहीं पड़ रहा है शायद आपने किसी कमजोर आदमी के घर में ढेर जमा रखा है भैया खून की बहुत जरूरत है जल्दी से कुछ और पैकिट भिजवा देना आगे वाली सडक पर रहने वाला आपका दोस्त बता रहा था की आपके यहाँ पर कुछ नहीं नालियां बन रही है क्या लगता है की, ये सब नालियों को गन्दा रखने का ठेका किसको मिलेगा? यदि आपके बाहरी दिल्ली वाले इलाके में कोई जगह खाली हो और आप कहे तो छोटे भैया को आपके पास भेज दूँ  कल कुछ बड़े मच्छर आये थे आते के साथ ही उन्होंने घर खाली करने के लिए बोल दिया है नहीं किया तो चार पैकिट खून माँगा है सिर्फ दस की महुलत दी है  और आगे की खबर ये है की अपने कूड़ेदान के सुखिमच्छर की लड़की नैना मच्छाराइन की शादी हो गई है अब वो यमुना  पार में चली गई है सुना है की यमुना भी गंदगी से पटी पड़ी है   यदि ऐसा है तो भैया आप भी जाकर देखना और हो सके तो अपने लिए जगह बनाकर हमें भी वाही बुला लेना   यहाँ का कोई भरोसा नहीं की कब क्या हो जाये  इसलिए जल्दी से खत लिखना  ख़ुशी की बात ये है की, भाभी माँ बनने वाली है और भाभी कह रही है की, आप जल्दी से आ जाओ 
आपकी छोटी बहन
मक्खी 

Tuesday, January 3, 2012

चुनाव में छोटे मेंढको का उदय


चुनावो से पहले बरसाती मेंढक बहार आ जाते है चुनावी समय में पुरानी मशीनो में फिर से तेल डाल दिया जाता है फिर खट खट कर छोटे मेंढको को छाप देती है  चुनाव होने के छह माह पूर्व ये मेंढक बाजार में अपनी आवाज निकलना शुरू करते है कुछ मेंढक राजनितिक पार्टियों के होते है, और कुछ चुनावो में मिलने वाले चंदे से अपना नाम चलते है ये साल में यदि कोई बड़ा त्यौहार हो या किसी राष्ट्रीय पर्व पर भी कभी- कभी दीखते है  कुछ पैसा कमाई करके वापिस बिल में चले जाते है बढ़े मेंढक पुरे साल भर इनको टिकने का मोका नहीं देते है 

राजनितिक पार्टिया भी छोटे मेंढको से अपना प्रचार करवाना बेहतर समझते है। इसके कई कारण होते है। 
लेकिन सबसे बड़ा कारण छोटे मेंढको की पंहुच आम आदमी के पास होती है। आम आदमी भी इस मेंढक की तरह ही पेपर (अख़बार) पढ़ते है। कुछ दिन राजनीती की गर्मी में हर कोई अपने हाथ सकने की सोचता है। चाहे उसका स्वरूप किसी भी तरह का हो सकता है। राजनेता से अपना काम छोटे मोटे काम निकलवाना हो या फ्री की शराब का मज़ा लेना हो।
बड़े मेंढक अपना बाजार जमाये हुए है। चुनाव आते ही मेंढको को खाने के लिए हरी और लाल घास राजनितिक पार्टियों से मिल जाती है। ये मेंढक बढ़े है। साल भर अपनी खुराक पार्टियों से लेते रहते है। बदले में उसकी टर टर भी बजा देते है। बड़े मेंढको ने अपनी पंहुच गाँव तक करने के लिए छोटे छोटे मेंढको में बाँट दिया है।  लेकिन ये छोटे छोटे मेंढको में भी पार्टी सोच विचार के विज्ञापन देते है। बरसाती मेंढको की पहुँच साल भर चलने वाले  छोटे छोटे मेंढको से भी ज्यादा  होती है जनता को ज्यादा प्रभावित करते है ये मेंढक ग्रामीण को अपना सा लगने वाला होता है।  देहाती भाषा का प्रयोग किया जाता है।  जिससे लोगो का जल्द ही विश्वास पात्र बन जाता है 
जल्द ही पांच राज्यों में चुनाव होने वाले है और यहाँ न जाने कितने बरसाती मेंढक आ गया है बाजार में दुकानों पर छोटे बड़े मेढको की भीड़ लगना शुरू हो गई है