“ठंडी हवा अन्दर आ रही हैं। मैडम, खिड़की बन्द कर दो” टिकट चैकर
पुष्पा शायद कहीं खोई हुई थी
मैडम टिकट दिखाना” टिकट चैकार
पुष्पा सहम उठी, अपने को सम्भालते हुऐ कहा “अगलौ कुणसौ है ?”
टिकट चैकर – घौसराणौ है। टिकट दिखाईये अपना”
पुष्पा ने अपने पुराने से थैले को खोल कर ध्यान से देखाने लगी
टिकट चैकर बोला “ टिकट है भी की यू ही घुस रही है इस थैले मे ?”
पुष्पा चैकर को टिकट दिखाते हुए, फिर थैले मे कुछ खोजने लगी।
चैकर- “ये लो” टिकट को देते हुऐ आगे बढ़ गया।
रेलगाड़ी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी।
पुष्पा थैले मे हाथ से टटोले जा रही थी। कभी - बाहर से कभी अन्दर से। डिब्बा लगभग खाली था। गाड़ी की गैलरी में फौजी अपना समान को ले जाते हुऐ दिखा।
पुष्पा ने उसकी और देखा। एक पल में ही आंखों में पानी की कुछ बूंदे आ गई।
बुढ़ीया ये सब सामने की सीट पर बैठी देख रही थी।
बुढ़ीया ने कहा “अंए छोरी काई देख री हैं और वा (फौजी) कू इसा काय कू देख री हैं ?”
पुष्पा की ओर से कोई उत्तर नही आया।
बुढ़ीया ने कहा “छोरी खां जायेगी ?”
इस बार पुष्पा “घोषराणौ टेसन आ गो का ?”
बुढीया पुष्पा को जिज्ञासा भरी नजरों से देख रही थी।
बुढीया- यो काई घोषराणौ - घोषराणौ टेसन लगा रखो हैं। आयगो तो, मैं बता दूंगो। खां सू आई य ? बुढीया बोलती ही जा रही थी। पुष्पा खामोश थी।
बुढ़िया बच्चे की तरफ इशारा करते है कहा "केक दिन को है यो ?"
पुष्पा "दो मह्ना को “
बुढ़िया "घोषराणा में कुन सा गाँव में जाय गी ?"
पुष्पा "टेशन के खिनाही ही खेतन में घर है या को " वो बच्चे की तरफ इशारा करते हुए कहा
बुढ़िया "कई घर कान क जा री इ का ? सासरो खां है तेरो ?”
पुष्पा ख़ामोशी से अपने बच्चे को देख रही थी। शायद उसके चहेरे में कुछ पढने की कोशिश कर रही थी डिब्बे की ख़ामोशी को चीरती हुई एक आवाज आई। गाड़ी ने होर्न दिया था ।
दूसरी आवाज एक चने बेचने वाले की थी " चड़ा लो चना गरम - गरम चेन, ओ डोकरी चड़ा लैगी का ?" चने वाले के अपनी टोकरी बुढ़िया की और करते हुए कहा
बुढ़िया- दो रूपया का दे द
चने वाला -" कई डोकरी दो रूपया का कई चड़ा आवका?"
तबाक से बुढ़िया बोली " देणा हो तो द नहीं तो आ गा कु जा या मुंड प मत बज
चने वाला -" लाया द , दो का तो लेल "
चने वाला चने पकड़ते हुए और पैसे लेकर आगे चला गया
बुढ़िया "ल छोरी चड़ा तो खा ल "
पुष्पा कुछ सोच ने लीगी और उसने चने के कुछ चार - पांच दाने ले लिए और एक - एक को देखने लगी। बुढ़िया से नजर बचाते हुए चने के दाने निचे गिरा दिए।
बाहर अभी सूरज की कुछ किरणे ही बदलो से बाहर दिख रही थी बादलों से ज्यादा तो कोहरे ने सूरज को ढक रखा था ।
बुढ़िया ने फिर अपना मुंह खोला " या को डोकरो खां है ?"
इस बार शायद पुष्पा बुदिया की बात पर ध्यान दे रही थी बुदिया की बात सुनकर झट से अपने बच्चे को सिने से लगा लिया और एक पल में ही उसकी मासुमस आँखों से पानी की कुछ बुँदे आ गई, और फिर अपने बच्चे के चेहरे को निहारने लग गई। बुढ़िया चुप चाप थी । शायद पुष्पा के बोलने का इंतजार कर रही थी। गाड़ी की स्पीड अब कुछ कम होने लगी। बुढ़िया- "मोकु लगे की टेशन आने वाडो है " पुष्पा खिड़की से बाहर की और देखने लगी। अभी भी ठंडी हवा आ रही थी। पुष्पा खड़ी होकर गाड़ी डिब्बे के गेट पर आ गई। सीट पे बेटी बुढ़िया एक बार फिर चिल्लाई "मर रंडी कई या कू मारेगी का ? हवा सिड़ी- सिड़ी चल री है या कू ठंड लग जाय गी ।"
इतने में गाड़ी रुकी और पुष्पा नीचे उतरने लगी। एक कांख में बच्चे को और दुसरे कंधे पर एक कपडे का थैला। पुष्पा नीचे उतर कर एक पेड़ से ठेले को टंगा, और गाड़ी की तरफ मुंह कर के खड़ी हो गई ।
बुढ़ीया खिड़की से चिल्ला रही थी। बार - बार यही पूछ रही थी " या का डोकरा का नाम कई है ?"
पुष्पा अपनी लुगड़ी (ओढ़नी ) का एक कोना अपनी पीछे लहंगे में टांग लिया दूसरा कोना सर पर लम्बा पूरा लिया और तीसरा को अपने आँचल में आगे टांग लिया
बुढ़िया गाड़ी में बैठी बैठी कुछ बड़ - बड़ रही थी
पुष्पा ने एक बार फिर बुढ़िया की और देखा " यो छोरो है छोरो है मेरी गोद म" अपने बच्चे की तरफ इशारा कर के बताया बुढ़िया की आँखे कुछ जिज्ञासा शांत और ममता भरी लग रही थी । पुष्पा ने फिर इशारा किया "उ देख री है, या का बाप की चिता तैयार है।" बुढ़िया ने अपनी नज़रे कुछ ऊँची उठाकर देखा । कुछ दुरी पर लोगो की भीड़ दिख रही थी। कुछ फौजी की वर्दी में भी थे और सब गाँव के ही लग रहे थे । भीड़ बहुत दिख रही थी, लेकिन आवाज कुछ नहीं आ रही थी। सिर्फ बन्दुक से निकलती गोलियों की आवाज कानो को सुने दे रही थी। बुढ़िया की नजरो के सामने एक तस्वीर खिंच गई जो शहीदों को दी जाने वाली सलामी की होती है ।
बुढ़िया ये सब सुनकर खामोश हो गई बुढ़िया पुष्पा की और देखे जा रही थी। इतने में एक मिलट्री की जिप आई और कुछ लोग वर्दी में थे। वो पुष्पा के पास आये और पुष्पा उनके साथ पैदल ही चल दी। बुढ़िया ख़ामोशी से उस और देखती रही । अब ट्रेन चल दी थी। बुढ़िया की नजरो को जहा तक पुष्पा नजर आई वो देखती रही, फिर बुढ़िया की आँखों में आंसू की कुछ बुँदे झलक पड़ी थी और वो पुष्पा को देखे जा रही थी। गाड़ी दूर निकल चुकी थी। बुढ़िया अब अपनी सिट पर सुकुड़ कर बैठ गई।
ठंडी हवा अभी भी यूँ ही आ रही थी। बुढ़िया का इस हवा का डर अब जा चूका था। लेकिन ठंडी हवा अभी भी यूँ ही अपनी रफ्तार से आ रही थी। ये हवा कब सुकून देने वाली होगी ? अब बुढ़िया कुछ सोच में डूब गई ।
1 comment:
हृदयविदारक है .
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