देश में बढे घोटले हो रहे है। सरकार परेशान हैं। विपक्ष सरकार पर लगातार भ्रष्टाचार पर प्रहार करता जा रहा है। सरकार भ्रष्टाचार में ऐसी उलझ गई हैं कि मंहगाई पर से ध्यान हट गया हैं। जनता क्या हैं? जनता को रोजना नई खबर सुनने का आदि हो गया है। जब कभी मंहगाई की बात होती है तो, भ्रष्टाचार का मामला दानव रुप में सामने आ खड़ा हो जाता हैं।
जहाँ भ्रष्टाचार ने अपने कदम गहराई से जमा लिए है। वही दुसरी और किसानों की आत्महत्या का सिलसिला लगातार बढता जा रहा हैं। सरकार की लाख कोशिश के बवजुद मंहगाई और किसान लगातार रोड. जाम विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।देश में आत्महत्याओं का सिलसिला लगातार बढ़ा की तरह बढ़ता जा रहा हैं। नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो का कहना है कि सन् 1999 से सन् 2005 के अंतराल में 1.5 लाख किसानों ने आत्महत्याएं कीं। सरकार मुआवजा न देने के सौ बहाने बनाती है।सन 1997 में जहा 95829 में से 100 लोगों ने आत्महत्या की थी। इस सन में किसान आत्महत्या का आंकड़ा चौकाने वाला हैं। 13622 में 100 लोगों ने 14.2 प्रतिशत की। किसानों में आत्महत्या के मामलो में सबसे आगे रहे महाराष्ट्र 2872, कर्नाटक 2282, आन्ध्रप्रदेश 2414, मध्यप्रदेश 1395, छतीसगढ. 1802, तमिलनाडु 1060 राज्य है।
कर्ज में डुबा हुआ किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। कर्ज में होने का कारण मौसम अनियमिता गरीबी है। जिसका फायदा सेठ साहूकार उठाते हैं। भारत के अलग अलग राज्य के किसानो कर्ज की स्थिति लगातार बढती जा रही है। आन्ध्रप्रदेश में 82 प्रतिशत ,तमिलनाडु 74 प्रतिशत, पंजाब 65 प्रतिशत, केरला 64 प्रतिशत, कनार्टक 61 प्रतिशत, मध्यप्रदेश 55 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 55 प्रतिशत किसान कर्ज में हैं।
वित्तीय वर्ष 2008. 09 के बजट में किसानों के लिए ऋण राहत योजना की घोषणा केन्द्रीय वित्त मंत्री ने की थी। ऋण माफी योजना के तहत 31 मार्च1997 से 31 मार्च2007 के बीच वितरित दिसम्बर 2007 तक बकाया और 29 फरवरी 2008 तक भुगतान नही हुए प्रत्यक्ष कृषि ऋण योजना के दायरे में आयेगा।सीमांत और छोटे किसानों के इस अवधि के कृषि ऋण पूरी तरह माफ अन्य किसानों को एक मुस्त अथवा तीन किश्तों में भुगतान पर 25 प्रतिशत रियायत दी जायेगी।
किसानों के कर्ज मुख्यतौर पर शादि और खेत में लगाई जाने वाली राशी होती हैं। अशिक्षित होने के कारण किसानों पर ज्यादा कर्ज होता हैं। विवाह मुण्डन हो या तीया पाचा। किसान को समाज के दबाव में आकर करना पड़ता हैं। खेत में खेती शुरु करने से बाजार पहुचने तक सारा काम कर्ज से करता है। जिससे चुकाने में उसकी 50 से 70 प्रतिशत कमाई फसल चली जाती हैं।
किसान का भाग्य मौसम पर निर्भर होता हैं। यदि वर्षा सही समय पर नही तो भी किसान मारा जाता है और वर्षा के साथ ओले हो जाये तो भी किसान मरता हैं। किसान कि स्थिति इधर कुँआ, उधर खाई जैसी हो गई हैं। यदि एक वर्ष फसल में नुकसान हो जाता हैं तो उसकी मार किसान लगभग अगले तीन साल तक झेलता है जो किसान साहूकार के पंजे में फंस जाता है उनकी स्थिति तो और भी खराब हो जाती हैं। सरकार ने किसानों के प्लायन और आत्महत्या के मध्यनजर रखते हुऐ कार्य कर रही हैं। इंदिरा आवास योजना के लिए सहायता राशी दि जाती है जिससे गरीब किसानों को रहने के लिए घर आवास योजना प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य लघु उधोंगो के लिए कर्जा देते हैं।

गरीब किसान शक्ति, धन, शिक्षा में इतना कमजोर होता है कि, वह किसी से अपने हक के लिए लड़ाइ भी नही कर सकता। भूमिहीन होने के बावजुद गरीबी रेखा की सूची में नाम नही होता। काम आने पर काम नही मिलता। भ्रष्टाचार में लिप्त इस श्रंखला को तोड़ना, नाको चबाने जैसा है।
भारत कृषि प्रधान देश हैं। इसमें इस तरह की घटनाऐ होना शर्मनाक हैं। जब किसान को दो वक्त की रोटी और सिंचाई के लिए नहर, तालाब में पानी होगा तो ही संभव हो सकता। भारत को मजबूत करना हैं। तो किसान को मजबूत करना होगा।
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