Thursday, March 31, 2011

समाजिक, आर्थिक असमानता एंव भ्रष्टाचार

 आधुनिक जगत क महान विरोधभास यह है कि हर स्थान पर मनुष्य अपने को समानता के सिद्धान्त का समर्थक बताते है और हर स्थान पर वे अपने जीवन में तथा दुसरे के जीवन में असमानता की उपस्थिति का सामना करते है।- आन्द्रे बेतई

 समाज में किसी खास वर्ग को किसी वस्तु त्यौहार और विश्व में अलग जाता है तो, असमानता श्रेणी में माना जाता है। समाज में असमानता अलग -अलग रुप में बांटी हुंई है। प्रथम प्राकृतिक या जैविक जैसे लिंग, स्वास्थ्य शारीरिक शक्ति, आयु, बुद्धि के स्तर पर देखते है। इन कमीयों के कारण, एक व्यक्ति अपने आपको समाज से अलग पाता हैं। मानसिक स्थिति ठिक नही होती हैं। यह एक पिछड़े वर्ग में ही गिनते है।
दुसरी स्थिति समाजिक ओर आर्थिक होती है जिसमें व्यक्ति के रहन-सहन समाजिक स्तर आदि चीजों को देखा जाता हैं। जिसमे अलग-अलग आर्थिक स्थिति के कारण माने जाते हैं।
भ्रष्टाचार  सस्ंकृति में वायरस की तरह फैलता जा रहा हैं। विदेशी फैसन के तौर पर अपना रहे हैं। जब सस्ंकृति का हनन होता हैं तो इसे सस्ंकृति भ्रष्टाचार  की श्रेणी में आता है। विकास के नाम पर फिजुल खार्ची में बढ़ोतरी कर रहे हैं।
हर कोई सबसे आगे रहना चहाता है। ये अच्छा भी है। जिसके लिए विश्वविधालय और स्कुलों में प्रष्न पत्र लीक किये जाते हैं। गैर सरकारी स्कुल सबसे आगे रहने के लिए जुगाड़ लगाते हैं। बच्चों को शुरु में ही भ्रष्टाचार  में ढकेल रहे है।
भारत को आजाद हुए 63 साल हो गये है। लेकिन आज भी छुआछूत, जाति को देखा जाता है। इतने लम्बे समय में थोड़ा सा तो बदलाव आया है। लेकिन स्थिति बहुत ज्यादा नहीं सुधरी है। राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, ज्योति बा फुले ने समान में एकता व समानता लाने के लिए आगे आये। स्वंतत्रता की लड़ाई में महात्मा गांधी ने मूल मंत्र दिया की एकता में शक्ति हैं। एक जुट रहना होगा। अपने अतिंम समय में भी एकता का संदेश देते रहे।
समाजिक असमानता जाति के आधार पर कि जाती है। उच्च जाति को स्वर्ण निम्न जाति को अछूत की श्रेणी में रख कर देखा जाता है। इसी अछूत कहलाने वाले वर्ग के लिए भीमराव अम्बेडकर ने कार्य किया। वे स्वंय अछूत कहलाने वाली जाति से संबद्ध थे। सदियों तक वह व्यवस्था रुढ़ियों ओर परम्पराओं के नाम पर चलती रही है। निम्न जाति का शोषण किया जाता है। इसका परिणाम यह निकला कि समाज के समाज के कुछ वर्गों का अधिपत्य रहा, ओर कुछ को अधीनस्थता का जीवन जीना पड़ा। पिछड़े ओर शोषित वर्ग समाजिक सोपान में न केवल निचले स्तर पर चले गये।
भारत सरकार ने समाजिक जीवन में एक जैसा वर्ग स्थापित करने के लिए भारतिय सविधान में प्रावधान बनाये गये हैं। ये प्रावधान अलग-अलग स्तर पर दिखाई पड़ते है। अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत देश सभी नागरिको को विधि की समानता का अधिकार प्रदान किया गया हैं। जिससे समाजिक स्तर पर लोकतंत्र मजबूत होता दिखाई पड़ता है।
समाज में यदि समानता बनानी है। तो आम आदमी का  आर्थिक पक्ष मजबूत करना होगा। सरकारी योजनाओं से अछुते किसानों को उनका हक लेना होगा। एक मजबूत लोकतंत्र बनाने के लिए किसानो कि आय बढानी जरुरी है। आर्थिक पक्ष राजनीति को भी प्रभावित करता हैं।
बाहुबली, दंबग व्यक्तित्व वाला व्यक्ति नोटो से वोट खरीदता हैं। पं॰ जवाहर लाल नेहरु ने ठिक ही लिखा है भूखे व्यक्ति के लिए वोट का कोई महत्व नही है। आर्थिक असमानता सम्पतिवान वर्ग का वर्चस्व बढाती हैं। शोषण और अन्याय की परिस्थितियाँ पैदा करती है। जो आक्रोष और अस्थिरता उत्पन्न करता हैं।
गांधी जी चुनावओं के लिए जनता से चंदा लेने के भी खिलाफ थे। चुनाव निधि के लिए सरदार पटेल के धन संग्रह के प्रति नाराजगी प्रकट करते हुए उन्होने कहा था कि, कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए धन की जरुरत ही नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस के लोगों को अपनी सेवा और समर्पण भावना से जनता में ऐसा प्रभाव बनाना चाहिए कि मतदाता स्वंय उनका प्रचार करें। लेकिन कांग्रेस चुनाव निधि के लिए चंदा लेती रही। जिससे धनी लोगों से ली गयी थोक रकमें भी शामिल होती थी।
प्रश्न यह उठता है कि, विकसित विकासशील देशों में भ्रष्टाचार  के स्वरुप में यह अंतर क्यों हैं ? क्या यह संभव है कि, तीसरी और दुसरी दुनिया के देश भ्रष्टाचार  के मामले में कम से कम विकसित देशों के समान निचले स्तर का भ्रष्टाचार  समाप्त कर सकें ?
राजनीतिक सत्ता पुलिस का अपने पक्ष में इस्तेमाल करती हैं और कई बार सत्ताच्युत नेताओं तक को पुलिस को रगड़ा लग जाता है। पुलिस भ्रष्टाचार  जाति धर्म उम्र लिंग पेशा आदि कटघरों को नहीं मानता।
विकीलीक्स पर लगातार भ्रष्टाचार   का खुलासा हो रहा है। पक्ष और विपक्ष एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है। इसको समाप्त करने के लिए एक पहल पश्चिम  बंगाल में बागडा़ सीट पर उपेन बिस्वास सीबीआई के पूर्व अतिरिक्त महानिदेषक चुनाव लड़ रहे है। बिस्वास चारा घोटले को सामने लेकर आये। बिस्वास की खास बात की चुनाव खर्च बागड़ा के लोग उठा रहे है। सारा चुनाव खर्च वेबसाईट पर डालेगें। बिस्वास मानना है की इस तरह भ्रष्टाचार  का खत्म किया जा सकता हैं। यदि सभी नेता अपना चुनावी खर्च का खुलास कर दें तो, भ्रष्टाचार  खत्म हो जायेगा। कोई कमेटि बनने कि कोई जरुरत नहीं पडेगा।
तमिलनाडु में आईएएस अधिकारी यू सागायमने वेब साईट पर अपनी संपत्ति घोषित करके राज्य के आईएएस अफसर के तौर पर इतिहास बनाया है।
1963 के अंत में तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने घोशणा की उच्च पदों पर भ्रष्टाचार  को खत्म करने के लिए वे मजबूत कदम उठायेगें और अगर वे इसमें कामयाब नही हुए तो गृह मंत्री के पद से त्यागपत्र दे देगें।
1986 में स्वीडन की एबीबोफोर्स कंपनी से 155 तोपें खरीदने का सौदा तय हुआ। स्वीडन कंपनी ने इस आदेश को पाने के लिए 64 करोड़ रुपयों की दलाली दी। इस कैस में निचली अदालत के एक जज ने बोफोर्स मामले को बंद करते समय सीबीआई को याद दिलाया की मामला 64 करोड़ रुपयों का था और इस कैस पर 250 करोड़ रुपयों खर्च कर दिये गये हैं।
आरुषि हेमराज हत्या कांड, कॉमनवेल्थ गेम्स, दूरसंचार विभाग 2-जी स्पेक्ट्रम जैसे बहुत कैस आज भी अदालतों में, और कमेटीयों में चल रहे है। जाने कब तक चलते रहगें ? आम आदमी से लूटा हुआ पैसा कब तक विदेशों में जमा रहेगां ?
[ इसमें बहुत  सी गलतिया फॉण्ट की वजह से है गलतिय नजरांदाज करना ]

Tuesday, March 29, 2011

भारतिय संस्कृति पर अपशब्द का प्रभाव

संस्कृति का अर्थ संस्कारो से हैं। भारतिय संस्कारो के अनुसार बड़ो का आदर करना, प्रेम से रहना हैं। संस्कृति प्रेम-भाव को बढ़ती हैं। विशव में अमेरीका हमारी संस्कृति को अपनाने कोशिश कर रहा हैं। भारत की योग शिक्षा को बढ़वा विदेशो में मिल रहा हैं। बढ़े परिवार यानी आप आपके बच्चे और माता-पिता और सम्भव हो तो चाचा, ताउ के परिवार के साथ रहे लेकिन भारत विदेशी संस्कृति को आधुनिकता के नाम पर ग्रहण कर रहा हैं।
ममूली कहासुनी में दोस्त को चाकू मारा शाहरुख ने। दो मोटर साईकिल चोर पकड़े। चोरी फिल्मीं अंदाज में। 11 वर्श की किषोरी से बलात्कार किया। ये कहानी नहीं है ये आज के समाज की हक्कित हैं।
भारतिय समाज में टेलीविजन आने से सूचना की क्रान्ति आई। जिससे भारतिय गांवों में भी इसका लाभ उठाया गया। सन 2000 –05 के बाद टेलीविजन पर न्यूज चैनलों की बाढ़ सी आ गई हैं। जहां हर चैनल टी आर पी पाने की होड़ में लगा हुआ हैं। टी वी चैनल के मालिक ये नहीं देखता की समाज पर इसका क्या असर होगा? टी आर पी पाने के लिए कुछ भी दिखाने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे विडियो का प्रयोग करते है जिससे दर्शक लगातार बना रहे। टी वी आधुनिकता के नाम पर अपशब्द गालीयों और अपद्रता की भाषा परोसी जा रही हैं। युवती मुन्नी और शीला की बोली बोल रही है युवक चुलबुल पांडे की जुबान के हो रहे है। पांडे जी संस्कारों छेद कर रहे है।
एक बस ड्राइवर ने कहा आजकल बच्चे गाली बहुत देते है मेरा बाप साला आया और आते ही साले ने मुझे डाँट दिया।
एकल परिवार बढ़ रहे है। माता-पिता नौकरी कर रहे है ऐसे में बच्चे टी वी देखते हुऐ अपद्र भाषा को सिखते है । जिन परिवारों में दादा दादी और कोई बढ़ा बुर्जुग रहते है उन परिवारों मे बच्चों के बोल चाल भाषा अलग होती हैं। ज्यादातर माता– पिता झगड़ा करते है जिससे बच्चे उनकी भाषा को ग्रहण करते हैं। पढ़े लिखे परिवार भी ऐसे भाषा से अछुते नही हैं। अखबारों और टी वी की अष्लीलता को अपना रहे हैं। ये पद्धिति पिढ़ी दर पिढ़ी वृद्धि हो रही हैं। वृद्ध आश्रम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। युवा बढ़े बुर्जुगों को बोझ समझते है। एकल परिवार को महत्व दे रहे है।
मनोवैज्ञानिको का मानना है कि व्यक्ति की सोच सीमित होती जा रही है जिसका परिणाम वह परिवार को छोटा व सीमित करना चहाता है। साहित्यिक भाषा की पकड़ कमजोर हो रही है विदेशी संस्कृति के कारण अपशब्दों को अपना रहे है। विदेशी संस्कृति को अपनना चाहिए। जिससे हम आधुनिक तो बने सर्कीण सोच वाले नही। जिस तरह इंडिया नही भारत को बनाये रख सके।
ऐसी घटनाऐ शार्मसार करने वाली होती है समाज में मानविय सवेंदनाए समाप्त होती जा रही है। ऐसी घटनाओं की शुरुआत  अपद्र भाषा की देन माना जा सकता है फिल्मी साहित्य से उपजी संस्कृति कही जा सकती हैं। टी वी चैनलों का समाज को उपहार सरुप हैं। 

Wednesday, March 16, 2011

किसान बनाम भ्रष्टाचार

देश में बढे घोटले हो रहे है। सरकार परेशान हैं। विपक्ष सरकार पर लगातार भ्रष्टाचार पर प्रहार करता जा रहा है। सरकार भ्रष्टाचार में ऐसी उलझ गई हैं कि मंहगाई पर से ध्यान हट गया हैं। जनता क्या हैं? जनता को रोजना नई खबर सुनने का आदि हो गया है। जब कभी मंहगाई की बात होती है तो, भ्रष्टाचार का मामला दानव रुप में सामने आ खड़ा हो जाता हैं।
                जहाँ भ्रष्टाचार ने अपने कदम गहराई से जमा लिए है। वही दुसरी और किसानों की आत्महत्या का सिलसिला लगातार बढता जा रहा हैं। सरकार की लाख कोशिश के बवजुद मंहगाई और किसान लगातार रोड. जाम विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
देश में आत्महत्याओं का सिलसिला लगातार बढ़ा की तरह बढ़ता जा रहा हैं। नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो का कहना है कि सन् 1999 से सन् 2005 के अंतराल में 1.5 लाख किसानों ने आत्महत्याएं कीं। सरकार मुआवजा न देने के सौ बहाने बनाती है।सन 1997 में जहा 95829 में से 100 लोगों ने आत्महत्या की थी। इस सन में किसान आत्महत्या का आंकड़ा चौकाने वाला हैं। 13622 में 100 लोगों ने 14.2 प्रतिशत की। किसानों में आत्महत्या के मामलो में सबसे आगे रहे महाराष्ट्र 2872, कर्नाटक 2282, आन्ध्रप्रदेश 2414, मध्यप्रदेश 1395, छतीसगढ. 1802, तमिलनाडु 1060 राज्य है।
      कर्ज में डुबा हुआ किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। कर्ज में होने का कारण मौसम अनियमिता गरीबी है। जिसका फायदा सेठ साहूकार उठाते हैं। भारत के अलग अलग राज्य के किसानो कर्ज की स्थिति लगातार बढती जा रही है। आन्ध्रप्रदेश में 82 प्रतिशत ,तमिलनाडु 74 प्रतिशत, पंजाब 65 प्रतिशत, केरला 64 प्रतिशत, कनार्टक 61 प्रतिशत, मध्यप्रदेश 55 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 55 प्रतिशत किसान कर्ज में हैं।
वित्तीय वर्ष 2008. 09 के बजट में किसानों के लिए ऋण राहत योजना की घोषणा केन्द्रीय वित्त मंत्री ने की थी। ऋण माफी योजना के तहत 31 मार्च1997 से 31 मार्च2007 के बीच वितरित दिसम्बर 2007 तक बकाया और 29 फरवरी 2008 तक भुगतान नही हुए प्रत्यक्ष कृषि ऋण योजना के दायरे में आयेगा।सीमांत और  छोटे किसानों के इस अवधि के कृषि ऋण पूरी तरह माफ अन्य किसानों को एक मुस्त अथवा तीन किश्तों में भुगतान पर 25 प्रतिशत रियायत दी जायेगी।
                किसानों के कर्ज मुख्यतौर पर शादि और खेत में लगाई जाने वाली राशी होती हैं। अशिक्षित होने के कारण किसानों पर ज्यादा कर्ज होता हैं। विवाह मुण्डन हो या तीया पाचा। किसान को समाज के दबाव में आकर करना पड़ता हैं। खेत में खेती शुरु करने से बाजार पहुचने तक सारा काम कर्ज से करता है। जिससे चुकाने में उसकी 50 से 70 प्रतिशत कमाई फसल चली जाती हैं।
                किसान का भाग्य मौसम पर निर्भर होता हैं। यदि वर्षा सही समय पर नही तो भी किसान मारा जाता है और वर्षा के साथ ओले हो जाये तो भी किसान मरता हैं। किसान कि स्थिति इधर कुँआ, उधर खाई जैसी हो गई हैं। यदि एक वर्ष फसल में नुकसान हो जाता हैं तो उसकी मार किसान लगभग अगले तीन साल तक झेलता है जो किसान साहूकार के पंजे में फंस जाता है उनकी स्थिति तो और भी खराब हो जाती हैं।
                सरकार ने किसानों के प्लायन और आत्महत्या के मध्यनजर रखते हुऐ कार्य कर रही हैं। इंदिरा आवास योजना के लिए सहायता राशी दि जाती है जिससे गरीब किसानों को रहने के लिए घर  आवास योजना प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य लघु उधोंगो के लिए कर्जा देते हैं।
                महात्मा गांधी राष्ट्रपति  ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत देश के करोडो ग्रामीण परिवारो को सालाना 100 दिन का रोजगार मिलता हैं। जिससे गांव के बी, पी, एल, कार्ड धारको को रोजगार दिया जाता हैं। लेकिन इसको भी भ्रष्टाचार ने पूरी तरह जकड़ लिया हैं। केन्द्र सरकार पैसा व्यक्ति के द्वारा काम के लिए देती है। जिसका दुरुपयोग ग्राम प्रधान और मनरेगा के कर्मचारी करते है। व्यक्ति की जगह ट्रक्टर और मशीनों से कराया जाता हैं जिससे ये पैसा पुंजीपतियों की जेब में चला जाता हैं। यदि कहीं काम व्यक्ति से कराया जाता है तो, उसमें गड़बड़ होती हैं। गैरहाजिर व्यक्ति की भी हाजिर लगा दी जाती हैं। जहां काम करने जाने वाला काम ही नही करता। मैट (उपस्थिति दर्ज करने वाला व्यक्ति)बिना काम किये ही उपस्थिति लगा देते है।मनरेगा भ्रष्टाचार से अछूता नही रहा। मनरेगा में वर्ष 2010-11 में दिसम्बर तक 4.1 करोड़ परिवारों को रोजगार मिला। महिलाओं व अनुसूचित जातियों/जनजातियों की भागीदारी 47 प्रतिशत तक बढ़ी हैं। योजना के तहत 10 करोड़ से अधिक बैंक, डाकघर खाते खोले गये हैं। वित्तिय समावेश की द्रष्टि से यह दुनिया की सर्वाधिक बड़ी योजना बन गई हैं।
गरीब किसान शक्ति, धन, शिक्षा में इतना कमजोर होता है कि, वह किसी से अपने हक के लिए लड़ाइ भी नही कर सकता। भूमिहीन होने के बावजुद गरीबी रेखा की सूची में नाम नही होता। काम आने पर काम नही मिलता। भ्रष्टाचार में लिप्त इस श्रंखला को तोड़ना, नाको चबाने जैसा है।
                भारत कृषि प्रधान देश हैं। इसमें इस तरह की घटनाऐ होना शर्मनाक हैं। जब किसान को दो वक्त की रोटी और सिंचाई के लिए नहर, तालाब में पानी होगा तो ही संभव हो सकता। भारत को मजबूत करना हैं। तो किसान को मजबूत करना होगा।