Thursday, November 17, 2011

पप्पू और पापा pappu or papa


"पापा अपनी गाड़ी कब लाओगे ?" पप्पू।
पापा- - अरे बेटा मे शेव कर रहा हूँ कट जायेगा।  थोड़ा दूर से बात करो। अरे शांति वर्दी तैयार है क्या?  मन ही मन कुछ बड़ - बड़ाने लगे  रोज सुबह - सुबह  उठो, जल्दी से तैयार कर अपने पॉइंट पर जाओ।  साला, दिन भर फ्री की धुँआ खाते रहो और, घर आओ तो बच्चे की फरमाइश सुनते रहो।
पप्पू - पापा आज मेरा जन्मदिन है। राकेश अपनी धुन में बड़- बड़ाने में लगा हुआ था। उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
पप्पू - जोर दे कर कहा "पापा आज मेरा जन्मदिन है क्या मिलेगा तोहफे में ?"
राकेश – (चौकते हुए) "क्या?" . चहरे पर परेशनी वाली मुद्रा को कोने में कर, चहरे पर मुस्कान लाये। "क्या चाहिए बेटा ?" बोलते वक्त तो बोल दिया लेकिन, महिना अभी आधा ही निकला है फिर एक लकीर चहरे पर खिंच गई 

राकेश ने एक बार पप्पू की तरफ देखा और कहा "अरे शांति आज रात को कुछ खाने में अच्छा बना लेना।  मै  भी जल्दी आने की कोशिश करूगां।  आज शाम हम साथ खाना खायेगें।  मुझे तो याद भी नहीं की साथ बैठकर पिछली कब खाना खाया था।
पप्पू "पापा मुझे मोटर साईकिल गिफ्ट देना आज।"
राकेश नाराज नजरो से "अभी नहीं, अभी उम्र नहीं है मोटर साईकिल की। तुम बच्चे हो अभी।"
पप्पू अब एक कोने से पापा के जुते  निकाल रहा है। रसोई से कुकर की सिटी निकलने की आवाज के साथ शांति ने (उपेक्षित भाव से ) कहा "ये देखो मोटर साईकिल चाहिए। अभी कार्ड तो बना नहीं।" इतना सुनते ही राकेश जोर से हंस पड़ा। राकेश "अरे बाबा कार्ड नहीं लाइसेंस।" थोड़ी हंसी को रोकते हुए कहा "शाम को तुम्हारा तोहफा मिल जायेगां।"
उत्सुकता के भाव से पप्पू ने पूछा "क्या होगा ?"
राकेश- शाम को पता चल जायेगा।
पप्पू " ठीक है पापा "

पप्पू अपने स्कुल बैग को ज़माने में लग गया।  राकेश "ये देखो वर्दी में चिटकनी सही नहीं है क्या करती हो पुरे दिन ? ( चिल्लाने वाले स्वर  में कहा ) कभी ये भी देख लिया करो।"
शांति "आपको लगता है मे पूरा दिन बैठी रहती हूँ।  (जोर देकर कहा ) जो पूरा दिन घर को सम्भालते - सम्भालते निकाल जाता है।" अब आवाज एक मजाक स्वरों में बदल गई थी।
पप्पू - पापा भैया ने फोन किया था। कुछ पैसे मांग रहे थे। कहा की, प्रोजेक्ट का कुछ सामान लाना है। राकेश - शांति एक तारीख को पैसे डाले थे ना, सब खर्च कर दिये?
शांति – हाँ, डाले थे पर वो तो प्रोजेक्ट में लगा दिये, और अब खर्चे के लिए मांग रहा है।
शांति अब राकेश का टिफिन पेक कर रही थी और कुछ मुंह में ही कुछ कुछ बोले जा रही थी।  रोज - रोज पैसे मांग लेते है। बच्चे जैसे की इनके पास पैसो का कोई पेड़ लगा हो। बच्चे तो महीने की कोई भी तारीख हो। जब भी कोई बड़ा कम आ पड़ता है। मुंह खोल देते है पैसे चाहिए। 

राकेश घर से जा चुके था पप्पू भी स्कुल के लिए तैयार होने लग गया। 
शांति - पप्पू तेरा भी टिफिन तैयार है। ले जाना।
पप्पू - ठीक है मम्मी।  
शांति - स्कुल में एक्जाम कब से है ?
पप्पू - 20 से
शांति - ठीक है. अपने दोस्तों को शाम को बुला लेना। मै खाने में कुछ अच्छा बना दूगीं।
पप्पू - ठीक है मम्मी, पप्पू अब स्कुल चला गया था।
शांति कुछ सोचते हुए " क्या बनाऊ शाम को, जो पप्पू खाता है वो, पप्पू के पापा को पसंद नहीं। ये भी एक झंझट है। "

राकेश फोन पर हाँ सर , ठीक है सर , अभी बीस मिनट में आता हूँ , जाम है सर ,ठीक है सर ,ठीक 
राकेश गुस्से से "ये साला जाम भी इसी रूट पर लगना होता है। हाँ, जरुर कोई भी नहीं होगा ट्रेफिक को देखने के लिए। राकेश उन्माने भाव से कुछ सोच रहा था। खिड़की से नजरे बहार चली गई।
एक लड़का   गाड़ियों    के बीच अपना करतब दिखा रहा था। राकेश की नजरे वही टिक गई।  करीब दो मिनट तक उसने अपना करतब दिखाया और आस - पास की कारों और बस में बैठे लोगो से पैसे मांग रहा था। 

राकेश बस से नीचे उतरा और एक दम तेजी से उस लड़के के पास गया। लड़के की नजर राकेश पर पड़ी। वो भागने लगा। पुलिसवाले की वर्दी जो थी राकेश पर "ओए इधर आ"  राकेश ने उसे पकड़ लिया। बस से एक यात्री चिल्लाया "मार साले के कान के नीचे, रोड पर भीख मांगता है। कानून तोड़ता है।"
एक कार वाला बोला "मार जायेगा किसी दिन, पता भी नहीं चलेगां।" राकेश ने गुस्से से कार वाले की तरफ देखा और फिर लड़के को लेकर पैदल ही चल दिया। 
बस में से एक यात्री ने कहा "आज तो गई इस लड़के की कमाई, पुलिस वाला है कुछ लिए बिना नहीं छोड़ेगा। "
दुसरे ने कहा - हाँ यार पुलिस को तो मोका मिलना चाहिए। बस लूटना शुरू कर देते है।" तब तक राकेश और लड़का उनकी आखों से ओझल हो चुके थे।

राकेश पानी ड्यूटी पॉइंट पर पहुँच गया। पॉइंट पर भरी जाम लगा हुआ था।  राकेश के दो साथी बूथ में बैठे थे और, दो पॉइंट से बहुत दूर खड़े थे। लेकिन एक टैम्पू सब्जियों से भरा बीच में खड़ा था। चौक की बत्तियां  काम कर रही थी। लेकिन. कोई भी उनका पालन नहीं कर रहा था।
राकेश बीच रोड़ पर आ कर टैम्पू वाले पर चिल्लाया "अबे यहाँ क्यों खड़ा कर रखा है ?"
साहब " टैम्पू ख़राब हो गया है। अकेला हूँ ना। इसलिए धक्के से हील भी नहीं रहा है।"
राकेश ने टेम्पो के आगे से गाड़िया हटवाई और फिर, धक्का लगवाया और रोड़ के एक किनारे कर दिया। अभी तक सभी गाडियों वाले टैम्पू की आड़ में लाल बत्ती होने पर भी चौक पार करने की कोशिश के कारण जाम लग गया था।  राकेश ने मोर्चा सम्भाला और थोड़ी देर में यातायात सामान्य हो गया। पूरा दिन इसे ही कामो में निकालता है। 

शाम को घर पंहुचा और फिर रोज सुबह की तरह बस में पहुंचा। आज राकेश के ने वर्दी नहीं पहनी थी। वो कल का लड़का उसके साथ था। यात्रियों ने तुरंत उसे पहचान लिया। जो लड़का कल तक गाडियों के आगे नाच दिखता था. वो आज उनके साथ बस में था। 
बस का कंडेकटर बोला " क्या भाई आज ड्यूटी नहीं जा रहे हो? ये बच्चा के साथ कहाँ जा रहे हो ?" इतने में दूसरा यात्री बोला क्या इसे कोर्ट ले जा रहे हो ?  कोन सी दफा लगाई है ?
राकेश - इस लड़के का नाम राम है। ये मेरे लड़के का तोहफा है ।(राम  की और इशारा  करते हुए ) आज राम एक दम अलग लग रहा था। नई पेंट  - शर्ट और पैरों में जूते थोड़े पुराने थे। 
और ये बोर्डिंग स्कुल में जा रहा है 
अब राम का चेहर खिड़की से बहार की और था और वो कारों को देख रहा था।

Tuesday, November 15, 2011

ठंडी हवा ( कहानी )


ठंी हवा अन्दर आ रही हैं। मैम, खिड़की बन्द कर दोटिकट चैकर
पुष्पा शायद कहीं खोई हुई थी
मैम टिकट दिखाना टिकट चैकार
पुष्पा सहम उठी, अपने को सम्भालते हुऐ कहा “अगलौ कुणसौ है ?”
टिकट चैकर – घौसराणौ है। टिकट दिखाईये अपना

पुष्पा ने अपने पुराने से थैले को खोल कर ध्यान से देखाने लगी
टिकट चैकर बोला  टिकट है भी की यू ही घुस रही है इस थैले मे ?” 

पुष्पा चैकर को टिकट दिखाते हुए, फिर थैले मे कुछ खोजने लगी।
चैकर- ये लो टिकट को देते हुऐ आगे बढ़ गया।
रेलगाड़ी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी।
पुष्पा थैले मे हाथ से टटोले जा रही थी। कभी - बाहर से कभी अन्दर से। डिब्बा लगभग खाली था। गाड़ी की गैलरी में फौजी अपना समान को ले जाते हुऐ दिखा।
पुष्पा ने उसकी और देखा। एक पल में ही आंखों में पानी की कुछ बूंदे आ गई।
बुढ़ीया ये सब सामने की सीट पर बैठी देख रही थी।
बुढ़ीया ने कहा अंए छोरी काई देख री हैं और वा (फौजी) कू इसा काय कू देख री हैं ? 
पुष्पा की ओर से कोई उत्तर नही आया।
बुढ़ीया ने कहा छोरी खां जायेगी ?
इस बार पुष्पा घोषराणौ टेसन आ गो का ?
बुढीया पुष्पा को जिज्ञासा भरी नजरों से देख रही थी।
बुढीया- यो काई घोषराणौ - घोषराणौ टेसन लगा रखो हैं। आयगो तो, मैं बता दूंगो। खां सू आई य ? बुढीया बोलती ही जा रही थी। पुष्पा खामोश थी।
बुढ़िया बच्चे की तरफ इशारा करते है कहा "केक दिन को है यो ?"
पुष्पा "दो मह्ना को “
बुढ़िया "घोषराणा में कुन सा गाँव में जाय गी ?"
पुष्पा "टेशन के खिनाही  ही खेतन में घर है या को " वो बच्चे की तरफ इशारा करते हुए कहा
बुढ़िया "कई घर कान क जा री इ का ? सासरो खां है तेरो ?”
पुष्पा ख़ामोशी से अपने बच्चे को देख रही  थी। शायद उसके चहेरे में कुछ पढने की कोशिश कर रही थी डिब्बे की ख़ामोशी को चीरती हुई एक आवाज आई। गाड़ी ने होर्न दिया था  
दूसरी आवाज एक चने बेचने वाले की थी "  चड़ा लो चना गरम - गरम चेन, ओ डोकरी चड़ा लैगी का ?" चने वाले के अपनी टोकरी बुढ़िया की और करते हुए कहा
बुढ़िया- दो रूपया का दे द
चने वाला -" कई डोकरी दो रूपया का कई चड़ा आवका?"
तबाक से बुढ़िया बोली " देणा हो तो द नहीं तो आ गा कु जा या मुंड प मत बज 
चने वाला -" लाया द , दो का तो लेल "
चने वाला चने पकड़ते हुए और पैसे लेकर आगे चला गया 
बुढ़िया "ल छोरी चड़ा तो खा ल "
पुष्पा कुछ सोच ने लीगी और उसने चने के कुछ चार - पांच दाने ले लिए और एक - एक को देखने लगी। बुढ़िया से नजर बचाते हुए चने के दाने निचे गिरा दिए।
बाहर अभी सूरज की कुछ किरणे ही बदलो से बाहर दिख रही थी   बादलों से ज्यादा तो कोहरे ने सूरज को ढक रखा था 
बुढ़िया ने फिर अपना मुंह खोला " या को डोकरो खां है ?"
इस बार शायद पुष्पा बुदिया की बात पर ध्यान दे रही थी  बुदिया की बात सुनकर झट से अपने बच्चे को सिने से लगा लिया और एक पल में ही उसकी मासुमस आँखों से पानी की कुछ बुँदे आ गई,   और फिर अपने बच्चे के चेहरे को निहारने लग गई। बुढ़िया चुप चाप थी । शायद पुष्पा के बोलने का इंतजार कर रही थी। गाड़ी की स्पीड अब कुछ कम  होने लगी।  बुढ़िया-  "मोकु लगे की टेशन आने वाडो है " पुष्पा खिड़की से बाहर की और देखने लगी। अभी भी ठंडी हवा आ रही थी। पुष्पा खड़ी होकर गाड़ी डिब्बे के गेट पर आ गई।  सीट पे बेटी बुढ़िया एक बार फिर चिल्लाई "मर रंडी कई या कू मारेगी का ? हवा सिड़ी- सिड़ी चल री है या कू ठंड लग जाय गी "
इतने में गाड़ी रुकी और पुष्पा नीचे उतरने लगी। एक कांख में बच्चे को और दुसरे कंधे पर एक कपडे का थैला। पुष्पा नीचे उतर कर एक पेड़ से ठेले को टंगा, और गाड़ी की तरफ  मुंह कर के खड़ी हो गई ।  

बुढ़ीया खिड़की से चिल्ला रही थी। बार - बार यही पूछ रही थी " या का डोकरा का नाम कई है ?"
पुष्पा अपनी लुगड़ी (ओढ़नी ) का एक कोना अपनी पीछे लहंगे  में टांग लिया दूसरा कोना सर पर लम्बा पूरा लिया और तीसरा को अपने आँचल में आगे टांग लिया 
बुढ़िया गाड़ी में बैठी बैठी कुछ बड़ - बड़ रही थी 
पुष्पा ने एक बार फिर बुढ़िया की और देखा " यो छोरो है छोरो है मेरी गोद म" अपने बच्चे की तरफ इशारा कर के बताया बुढ़िया की आँखे कुछ जिज्ञासा शांत और ममता भरी लग रही थी । पुष्पा ने फिर इशारा किया "उ देख री है, या का बाप की चिता तैयार है।" बुढ़िया ने अपनी नज़रे कुछ ऊँची उठाकर देखा कुछ दुरी पर लोगो की भीड़ दिख रही थी। कुछ फौजी की वर्दी में भी  थे और सब गाँव के ही लग रहे थे । भीड़ बहुत दिख रही थी, लेकिन आवाज कुछ नहीं आ रही थी। सिर्फ बन्दुक से निकलती  गोलियों की आवाज कानो को सुने दे रही थी। बुढ़िया की नजरो के सामने एक तस्वीर खिंच गई जो शहीदों को दी जाने वाली सलामी की होती है 

बुढ़िया ये सब सुनकर खामोश हो गई बुढ़िया पुष्पा की और देखे जा रही थी।  इतने में एक मिलट्री की जिप आई और कुछ लोग वर्दी में थे।  वो पुष्पा के पास आये और पुष्पा उनके साथ पैदल ही चल दी। बुढ़िया ख़ामोशी से उस और देखती रही । अब ट्रेन चल दी थी। बुढ़िया की नजरो को जहा तक पुष्पा नजर आई वो देखती रही, फिर बुढ़िया की आँखों में आंसू  की कुछ बुँदे झलक पड़ी थी और वो पुष्पा को देखे  जा रही थी। गाड़ी दूर निकल चुकी थी। बुढ़िया अब अपनी सिट पर सुकुड़ कर बैठ गई। 

ठंडी हवा अभी भी यूँ ही आ रही थी। बुढ़िया का इस हवा का डर अब जा चूका था।   लेकिन ठंडी हवा अभी भी यूँ ही अपनी रफ्तार से आ रही थी। ये हवा कब सुकून देने वाली होगी ?  अब बुढ़िया कुछ सोच में डूब गई ।