मरू उत्सव शुरु होने से पहले अर्जुन सिंह भाटी ने जैसलमेर वासियों की खुशी दुगनी कर दी। (लाइव शो अराउंड द वर्ल्ड विथ अर्जुन सिंह भाटी( के 100 एपिसोड पुरे कर लिए है। ये कार्यक्रम अमेरिक अंग्रेजी में रेडियो पर लाइव आता है।
जैसलमेर मे मरु समारोह की धूम मची हुई है।16 से 18 फरवरी को आयोजित कार्यक्रमों की तैयारी व्यापक तौर पर की जा रही है। मारवाड़ी छवि के साथ-साथ मनोरंजन के लिए प्रसिद्ध है। मरू मेले में उँटो की प्रदर्शनी की जाती है। राजस्थान के रेगिस्तान के जहाज ऊँट के साथ मिलकर करतब दिखाए जाते है। यह पूनम सिंह स्टेडियम में किया जाता है। सबसे ज्यादा आकर्षक मुंछो की प्रदर्शनी होती है। यह मूंछ प्रतिस्पर्द्धा में विदेशी पर्यटक भी भाग लेते है। मारवाड़ी संस्कृति का रूप पुरे मेले पर झलकता है। मेले में देशी विदेशी पयर्टको को बढ़ावा देने के लिए अलग अलग तरह के कार्यक्रम किये जाते है।
जैसलमेर राजस्थान का सबसे बड़ा(क्षेत्रफल) जिला है। जैसलमेर का नामकरण भाटी जैसल राजा के नाम पर रखा गया। भारतीय इतिहास में ये अपनी कला व् संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। भारत के पश्चिम भाग में है। इसकी सीमा रेखा पाकिस्तान से मिलती है। जैसलमेर में रेत के टीले है इनको धौरे भी कहा जाता है। धौरे सम के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। इसका कारण भी है की यह रेत कुछ दुरी पर देखने पर पानी लगती है। सम के घर मिटटी के बने होते है। यह मिटटी भी सम से 60 और जैसलमेर शहर से करीब 150 कि मी दूर से लाई जाती है। सम में घर पर छत जंवासा और आकड़ो के पत्तो से बनाई जाती है। ये घर शंकुनमा होते है।
संस्कृति तो यह के कण−कण में बसी हुई है। राजस्थान कि संस्कृति एक तरह इसको ही मन जाता रहा है। कालबेलिया और घुमर यह के स्थानीय नृत्य है। नृत्य करते समय पहने जाने वाले वस्त्र आभूषण विशेष है। ये अपने आप में ही संस्कृति कि छवि को प्रदर्सित करते है। नायिका के बालो में 2 से 3 के रंग बिरंगे चुटीले होते है। नायिका कि ओढ़नी ढेड पाट साथ में 7 से 8 मीटर का लंहगा होता है। आभूषण के नाम पुरे शरीर पर चांदी होती है।
प्राचीन महलो कि कारीगरी देखने में लुभावनी है। कारीगरों ने बहुत बारीकी से पत्थर पर नकाशी व् चित्रकारी के नमूने उखेरे है! ये चित्रकारी विदेशो तक प्रसिध्द है। सोनार किला जैसलमेर के शहर में है या, ये कहे कि किले के चारो तरफ शहर बसा हुआ है। सोनार किला छोटी सी पहाड़ी पर बसा हुआ है। किले से पूरा जैसलमेर सुंदर ढंग से बसाया हुआ शहर लगता है। सोनार किले के ठीक सामने गडिसर झील है। झील किले के दरवाजा के सामने है। पटवा हवेली दो अलग -अलग समय कि बने हुई है । लेकिन देखने से कोई जज (निर्णय) नहीं कर सकता। किले और हवेली कि खास बात बनाने में चुने और सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसमे पीले पत्थर चोकोर व् आयत में कटा कर जमाया गया है। पीले होने के कारण यह सोनार किला कहा जाता है। सूर्यउदय के समय किले कि छटा देखते ही बनती है। किले के परकोट बहुत ही सुंदर दंग से पत्थरों को जोड़ा गया है।
जैसलमेर पयर्टको के मायने में बहुत महत्वपूर्ण जिला है। इसका मुख्य कारण यह कि संस्कृति के साथ साथ वातावरण भी है 20 से 30 प्रतिशत लोग यह पयर्टक पर निर्भर रहते है।
गर्मी का मौसम बहुत निराशा भरा होता है लेकिन और सभी मौसम यह घुमने के अनुकूल है। सर्दियों में यहा नाम मात्र कि ठंढ पडती है! ठंढे परदेसो के विदेशी यह ठंढ में घुमने आते है।
आधुनिक बदलाव के साथ साथ जैसलमेर इतना नहीं बदला है। यह शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ हाय भारतीय सेना का यहा जमावड़ा रहता है। इसका मुख्य कारण पाकिस्तान से जुडी सीमा कि सुरक्षा करना। सीमा पर सैनिको के लिए शहर से सामान ले जाया जाता है ! यह के लोग आपने आप को सुरक्षित महसूस करते है। सुविधा के नाम पर यहा सेना का छोटा सा हवाई अडडा भी है। यातायात के लिए रेल व् बस भी है। चिकित्सा के क्षेत्र में यह बहुत पिछड़ा हुआ है ।
इसी स्थति में संस्कृति के साथ−साथ आधुनिकता व् शिक्षा को यहा के लिय बदव लाना होगा ।