Tuesday, December 6, 2011

क्या फेसबुक पर भी सरकार हावी ?

"अब क्या फेसबुक पर भी सरकार हावी हो जाएगी ?  सरकार कुछ तस्वीरों के नाम पर बची कुची आवाजों को भी बंद कर देनी चाहती है ?"
युवाको अपनी बात रखने की आजादी शायद अब न रहे। टेलिकॉम मिनिस्टर कपिल सिब्बल ने इंटरनेट कंपनियों से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और मोहम्मद पैगंबर से जुड़ी कथित अपमानजनक, गलत और भड़काने वाली सामग्रियों को हटाने के लिए कहा है। क्या अब गूगल ,फेसबुक ,मेल, टूयूटर सरकार की मर्जी से चलेगे ? कपिल सिब्बल का माना है की ये देश में अराजकता पैदा कर रहे है।

शायद अब कपिल जी को अपने कार्टूनों का पता चल गया है। इस लिए वो फेसबुक पर भी सेंसर लगवाना चाहते है लेकिन फेसबुक पर तो पहले से ही इसके लिए कार्य किया जा रहा है। एक और सेंसर की आवश्कता क्या है ? लगातार देश में हो रहे घोटालो को उजागर करने में फेसबुक की अहम भूमिका रही है ये भूमिका चाहे प्रत्यक्ष रूप से न रही हो, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से ये सभी खबरों को जनता तक आसानी से पहुंचा रहा है ।

मिडिया को सरकार अपने अनुरूप भोकने वाला बना लिया है। इस लिए मिडिया एक पक्ष की खबरे ही दिखता है। राजनीतिक पार्टिया खबरे अपने अनुसार चलवाती है। मिडिया में सेंसर का प्रवधान है इस लिए कुछ खबरों को दिखाया ही नहीं जाता है टी वी और अखबारों में जनता की आवाज़ नहीं पैसा बोलता है । जन्हा से पैसा मिलेगा वही खबर चलेगी ।

फेसबुक पर भड़काऊ तस्वीरें दिखाईं। सिब्बल ने पूछा कि इन तस्वीरों के बारे में उनकी क्या राय है? सिब्बल ने उनसे कहा कि भारत सरकार सेंसरशिप में विश्वास नहीं करती है लेकिन विभिन्न समुदायों की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाले और अन्य संवेदनशील मसलों को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता। चूंकि ये कंपनियां इन साइट्स को चलाती हैं इसलिए उन्हें इसे नियमित करना होगा।
इससे पहले 1975 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अखबार पे प्रतिबंध लगाया था। उस समय भी मिडिया की इतनी पहुँच जनता तक नहीं थी और, सोसल साइट्स का तो नाम ओ निशान नहीं था फिर, भी इंदिरा गांधी ने जनता की आवाज़ को दबाने का भरसक प्रयास किया था ।
कंपनियों की दलील है कि इनमें से ज्यादातर कंटेंट यूजर्स की ओर से ही आता है इसलिए इन पर नियंत्रण रखना मुश्किल है और ऐसे कंटेंट के लिए कंपनियों के प्रबंधन को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। हां, किसी खास मामले में अगर कोई शिकायत आती है तो वे जरूर देखेंगे लेकिन आम तौर पर इन्हें नियंत्रित करने से इस माध्यम का इंटरऐक्टिव चरित्र ही नष्ट हो जाएगा।
कपिल सिब्बल तस्वीरों से नहीं, जनता के आन्दोलन से डर रहे है। जनता फेसबुक पर एक जुट हो रही है । आपस में संवाद बनती है और एक दुसरे के पक्ष को जानने की कोशिश करती है। युवाओ में फेसबुक का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है और आज का युवा जानना चाहता है की देश में क्या हो रहा है उसके साथी किस विषय पर क्या सोचते है?

यदि बात केवल कुछ तस्वीरों को लेकर है तो ठीक है लेकिन जब ये इससे ज्यादा प्रतिबंद करते है तो ये जनतंत्र की आवाज़ पर हमला है ।

जनता कुछ तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करती है तो ये उसका विरोध जताने का एक तरीका है और तस्वीरों के नाम पर यदि ये विचारो पर रोक लगते है तो ये ठीक नहीं है
कपिल सिब्बल जो इन जैसी तस्वीरों के कारण फेसबुक पर प्रतिबन्ध की बाते करते है----




 






(नोट -- ये सभी तस्वीरे गूगल और फेसबुक से ली गई है ) ये जनता है किसी को नहीं छोडती  है 

Thursday, November 17, 2011

पप्पू और पापा pappu or papa


"पापा अपनी गाड़ी कब लाओगे ?" पप्पू।
पापा- - अरे बेटा मे शेव कर रहा हूँ कट जायेगा।  थोड़ा दूर से बात करो। अरे शांति वर्दी तैयार है क्या?  मन ही मन कुछ बड़ - बड़ाने लगे  रोज सुबह - सुबह  उठो, जल्दी से तैयार कर अपने पॉइंट पर जाओ।  साला, दिन भर फ्री की धुँआ खाते रहो और, घर आओ तो बच्चे की फरमाइश सुनते रहो।
पप्पू - पापा आज मेरा जन्मदिन है। राकेश अपनी धुन में बड़- बड़ाने में लगा हुआ था। उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
पप्पू - जोर दे कर कहा "पापा आज मेरा जन्मदिन है क्या मिलेगा तोहफे में ?"
राकेश – (चौकते हुए) "क्या?" . चहरे पर परेशनी वाली मुद्रा को कोने में कर, चहरे पर मुस्कान लाये। "क्या चाहिए बेटा ?" बोलते वक्त तो बोल दिया लेकिन, महिना अभी आधा ही निकला है फिर एक लकीर चहरे पर खिंच गई 

राकेश ने एक बार पप्पू की तरफ देखा और कहा "अरे शांति आज रात को कुछ खाने में अच्छा बना लेना।  मै  भी जल्दी आने की कोशिश करूगां।  आज शाम हम साथ खाना खायेगें।  मुझे तो याद भी नहीं की साथ बैठकर पिछली कब खाना खाया था।
पप्पू "पापा मुझे मोटर साईकिल गिफ्ट देना आज।"
राकेश नाराज नजरो से "अभी नहीं, अभी उम्र नहीं है मोटर साईकिल की। तुम बच्चे हो अभी।"
पप्पू अब एक कोने से पापा के जुते  निकाल रहा है। रसोई से कुकर की सिटी निकलने की आवाज के साथ शांति ने (उपेक्षित भाव से ) कहा "ये देखो मोटर साईकिल चाहिए। अभी कार्ड तो बना नहीं।" इतना सुनते ही राकेश जोर से हंस पड़ा। राकेश "अरे बाबा कार्ड नहीं लाइसेंस।" थोड़ी हंसी को रोकते हुए कहा "शाम को तुम्हारा तोहफा मिल जायेगां।"
उत्सुकता के भाव से पप्पू ने पूछा "क्या होगा ?"
राकेश- शाम को पता चल जायेगा।
पप्पू " ठीक है पापा "

पप्पू अपने स्कुल बैग को ज़माने में लग गया।  राकेश "ये देखो वर्दी में चिटकनी सही नहीं है क्या करती हो पुरे दिन ? ( चिल्लाने वाले स्वर  में कहा ) कभी ये भी देख लिया करो।"
शांति "आपको लगता है मे पूरा दिन बैठी रहती हूँ।  (जोर देकर कहा ) जो पूरा दिन घर को सम्भालते - सम्भालते निकाल जाता है।" अब आवाज एक मजाक स्वरों में बदल गई थी।
पप्पू - पापा भैया ने फोन किया था। कुछ पैसे मांग रहे थे। कहा की, प्रोजेक्ट का कुछ सामान लाना है। राकेश - शांति एक तारीख को पैसे डाले थे ना, सब खर्च कर दिये?
शांति – हाँ, डाले थे पर वो तो प्रोजेक्ट में लगा दिये, और अब खर्चे के लिए मांग रहा है।
शांति अब राकेश का टिफिन पेक कर रही थी और कुछ मुंह में ही कुछ कुछ बोले जा रही थी।  रोज - रोज पैसे मांग लेते है। बच्चे जैसे की इनके पास पैसो का कोई पेड़ लगा हो। बच्चे तो महीने की कोई भी तारीख हो। जब भी कोई बड़ा कम आ पड़ता है। मुंह खोल देते है पैसे चाहिए। 

राकेश घर से जा चुके था पप्पू भी स्कुल के लिए तैयार होने लग गया। 
शांति - पप्पू तेरा भी टिफिन तैयार है। ले जाना।
पप्पू - ठीक है मम्मी।  
शांति - स्कुल में एक्जाम कब से है ?
पप्पू - 20 से
शांति - ठीक है. अपने दोस्तों को शाम को बुला लेना। मै खाने में कुछ अच्छा बना दूगीं।
पप्पू - ठीक है मम्मी, पप्पू अब स्कुल चला गया था।
शांति कुछ सोचते हुए " क्या बनाऊ शाम को, जो पप्पू खाता है वो, पप्पू के पापा को पसंद नहीं। ये भी एक झंझट है। "

राकेश फोन पर हाँ सर , ठीक है सर , अभी बीस मिनट में आता हूँ , जाम है सर ,ठीक है सर ,ठीक 
राकेश गुस्से से "ये साला जाम भी इसी रूट पर लगना होता है। हाँ, जरुर कोई भी नहीं होगा ट्रेफिक को देखने के लिए। राकेश उन्माने भाव से कुछ सोच रहा था। खिड़की से नजरे बहार चली गई।
एक लड़का   गाड़ियों    के बीच अपना करतब दिखा रहा था। राकेश की नजरे वही टिक गई।  करीब दो मिनट तक उसने अपना करतब दिखाया और आस - पास की कारों और बस में बैठे लोगो से पैसे मांग रहा था। 

राकेश बस से नीचे उतरा और एक दम तेजी से उस लड़के के पास गया। लड़के की नजर राकेश पर पड़ी। वो भागने लगा। पुलिसवाले की वर्दी जो थी राकेश पर "ओए इधर आ"  राकेश ने उसे पकड़ लिया। बस से एक यात्री चिल्लाया "मार साले के कान के नीचे, रोड पर भीख मांगता है। कानून तोड़ता है।"
एक कार वाला बोला "मार जायेगा किसी दिन, पता भी नहीं चलेगां।" राकेश ने गुस्से से कार वाले की तरफ देखा और फिर लड़के को लेकर पैदल ही चल दिया। 
बस में से एक यात्री ने कहा "आज तो गई इस लड़के की कमाई, पुलिस वाला है कुछ लिए बिना नहीं छोड़ेगा। "
दुसरे ने कहा - हाँ यार पुलिस को तो मोका मिलना चाहिए। बस लूटना शुरू कर देते है।" तब तक राकेश और लड़का उनकी आखों से ओझल हो चुके थे।

राकेश पानी ड्यूटी पॉइंट पर पहुँच गया। पॉइंट पर भरी जाम लगा हुआ था।  राकेश के दो साथी बूथ में बैठे थे और, दो पॉइंट से बहुत दूर खड़े थे। लेकिन एक टैम्पू सब्जियों से भरा बीच में खड़ा था। चौक की बत्तियां  काम कर रही थी। लेकिन. कोई भी उनका पालन नहीं कर रहा था।
राकेश बीच रोड़ पर आ कर टैम्पू वाले पर चिल्लाया "अबे यहाँ क्यों खड़ा कर रखा है ?"
साहब " टैम्पू ख़राब हो गया है। अकेला हूँ ना। इसलिए धक्के से हील भी नहीं रहा है।"
राकेश ने टेम्पो के आगे से गाड़िया हटवाई और फिर, धक्का लगवाया और रोड़ के एक किनारे कर दिया। अभी तक सभी गाडियों वाले टैम्पू की आड़ में लाल बत्ती होने पर भी चौक पार करने की कोशिश के कारण जाम लग गया था।  राकेश ने मोर्चा सम्भाला और थोड़ी देर में यातायात सामान्य हो गया। पूरा दिन इसे ही कामो में निकालता है। 

शाम को घर पंहुचा और फिर रोज सुबह की तरह बस में पहुंचा। आज राकेश के ने वर्दी नहीं पहनी थी। वो कल का लड़का उसके साथ था। यात्रियों ने तुरंत उसे पहचान लिया। जो लड़का कल तक गाडियों के आगे नाच दिखता था. वो आज उनके साथ बस में था। 
बस का कंडेकटर बोला " क्या भाई आज ड्यूटी नहीं जा रहे हो? ये बच्चा के साथ कहाँ जा रहे हो ?" इतने में दूसरा यात्री बोला क्या इसे कोर्ट ले जा रहे हो ?  कोन सी दफा लगाई है ?
राकेश - इस लड़के का नाम राम है। ये मेरे लड़के का तोहफा है ।(राम  की और इशारा  करते हुए ) आज राम एक दम अलग लग रहा था। नई पेंट  - शर्ट और पैरों में जूते थोड़े पुराने थे। 
और ये बोर्डिंग स्कुल में जा रहा है 
अब राम का चेहर खिड़की से बहार की और था और वो कारों को देख रहा था।

Tuesday, November 15, 2011

ठंडी हवा ( कहानी )


ठंी हवा अन्दर आ रही हैं। मैम, खिड़की बन्द कर दोटिकट चैकर
पुष्पा शायद कहीं खोई हुई थी
मैम टिकट दिखाना टिकट चैकार
पुष्पा सहम उठी, अपने को सम्भालते हुऐ कहा “अगलौ कुणसौ है ?”
टिकट चैकर – घौसराणौ है। टिकट दिखाईये अपना

पुष्पा ने अपने पुराने से थैले को खोल कर ध्यान से देखाने लगी
टिकट चैकर बोला  टिकट है भी की यू ही घुस रही है इस थैले मे ?” 

पुष्पा चैकर को टिकट दिखाते हुए, फिर थैले मे कुछ खोजने लगी।
चैकर- ये लो टिकट को देते हुऐ आगे बढ़ गया।
रेलगाड़ी अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी।
पुष्पा थैले मे हाथ से टटोले जा रही थी। कभी - बाहर से कभी अन्दर से। डिब्बा लगभग खाली था। गाड़ी की गैलरी में फौजी अपना समान को ले जाते हुऐ दिखा।
पुष्पा ने उसकी और देखा। एक पल में ही आंखों में पानी की कुछ बूंदे आ गई।
बुढ़ीया ये सब सामने की सीट पर बैठी देख रही थी।
बुढ़ीया ने कहा अंए छोरी काई देख री हैं और वा (फौजी) कू इसा काय कू देख री हैं ? 
पुष्पा की ओर से कोई उत्तर नही आया।
बुढ़ीया ने कहा छोरी खां जायेगी ?
इस बार पुष्पा घोषराणौ टेसन आ गो का ?
बुढीया पुष्पा को जिज्ञासा भरी नजरों से देख रही थी।
बुढीया- यो काई घोषराणौ - घोषराणौ टेसन लगा रखो हैं। आयगो तो, मैं बता दूंगो। खां सू आई य ? बुढीया बोलती ही जा रही थी। पुष्पा खामोश थी।
बुढ़िया बच्चे की तरफ इशारा करते है कहा "केक दिन को है यो ?"
पुष्पा "दो मह्ना को “
बुढ़िया "घोषराणा में कुन सा गाँव में जाय गी ?"
पुष्पा "टेशन के खिनाही  ही खेतन में घर है या को " वो बच्चे की तरफ इशारा करते हुए कहा
बुढ़िया "कई घर कान क जा री इ का ? सासरो खां है तेरो ?”
पुष्पा ख़ामोशी से अपने बच्चे को देख रही  थी। शायद उसके चहेरे में कुछ पढने की कोशिश कर रही थी डिब्बे की ख़ामोशी को चीरती हुई एक आवाज आई। गाड़ी ने होर्न दिया था  
दूसरी आवाज एक चने बेचने वाले की थी "  चड़ा लो चना गरम - गरम चेन, ओ डोकरी चड़ा लैगी का ?" चने वाले के अपनी टोकरी बुढ़िया की और करते हुए कहा
बुढ़िया- दो रूपया का दे द
चने वाला -" कई डोकरी दो रूपया का कई चड़ा आवका?"
तबाक से बुढ़िया बोली " देणा हो तो द नहीं तो आ गा कु जा या मुंड प मत बज 
चने वाला -" लाया द , दो का तो लेल "
चने वाला चने पकड़ते हुए और पैसे लेकर आगे चला गया 
बुढ़िया "ल छोरी चड़ा तो खा ल "
पुष्पा कुछ सोच ने लीगी और उसने चने के कुछ चार - पांच दाने ले लिए और एक - एक को देखने लगी। बुढ़िया से नजर बचाते हुए चने के दाने निचे गिरा दिए।
बाहर अभी सूरज की कुछ किरणे ही बदलो से बाहर दिख रही थी   बादलों से ज्यादा तो कोहरे ने सूरज को ढक रखा था 
बुढ़िया ने फिर अपना मुंह खोला " या को डोकरो खां है ?"
इस बार शायद पुष्पा बुदिया की बात पर ध्यान दे रही थी  बुदिया की बात सुनकर झट से अपने बच्चे को सिने से लगा लिया और एक पल में ही उसकी मासुमस आँखों से पानी की कुछ बुँदे आ गई,   और फिर अपने बच्चे के चेहरे को निहारने लग गई। बुढ़िया चुप चाप थी । शायद पुष्पा के बोलने का इंतजार कर रही थी। गाड़ी की स्पीड अब कुछ कम  होने लगी।  बुढ़िया-  "मोकु लगे की टेशन आने वाडो है " पुष्पा खिड़की से बाहर की और देखने लगी। अभी भी ठंडी हवा आ रही थी। पुष्पा खड़ी होकर गाड़ी डिब्बे के गेट पर आ गई।  सीट पे बेटी बुढ़िया एक बार फिर चिल्लाई "मर रंडी कई या कू मारेगी का ? हवा सिड़ी- सिड़ी चल री है या कू ठंड लग जाय गी "
इतने में गाड़ी रुकी और पुष्पा नीचे उतरने लगी। एक कांख में बच्चे को और दुसरे कंधे पर एक कपडे का थैला। पुष्पा नीचे उतर कर एक पेड़ से ठेले को टंगा, और गाड़ी की तरफ  मुंह कर के खड़ी हो गई ।  

बुढ़ीया खिड़की से चिल्ला रही थी। बार - बार यही पूछ रही थी " या का डोकरा का नाम कई है ?"
पुष्पा अपनी लुगड़ी (ओढ़नी ) का एक कोना अपनी पीछे लहंगे  में टांग लिया दूसरा कोना सर पर लम्बा पूरा लिया और तीसरा को अपने आँचल में आगे टांग लिया 
बुढ़िया गाड़ी में बैठी बैठी कुछ बड़ - बड़ रही थी 
पुष्पा ने एक बार फिर बुढ़िया की और देखा " यो छोरो है छोरो है मेरी गोद म" अपने बच्चे की तरफ इशारा कर के बताया बुढ़िया की आँखे कुछ जिज्ञासा शांत और ममता भरी लग रही थी । पुष्पा ने फिर इशारा किया "उ देख री है, या का बाप की चिता तैयार है।" बुढ़िया ने अपनी नज़रे कुछ ऊँची उठाकर देखा कुछ दुरी पर लोगो की भीड़ दिख रही थी। कुछ फौजी की वर्दी में भी  थे और सब गाँव के ही लग रहे थे । भीड़ बहुत दिख रही थी, लेकिन आवाज कुछ नहीं आ रही थी। सिर्फ बन्दुक से निकलती  गोलियों की आवाज कानो को सुने दे रही थी। बुढ़िया की नजरो के सामने एक तस्वीर खिंच गई जो शहीदों को दी जाने वाली सलामी की होती है 

बुढ़िया ये सब सुनकर खामोश हो गई बुढ़िया पुष्पा की और देखे जा रही थी।  इतने में एक मिलट्री की जिप आई और कुछ लोग वर्दी में थे।  वो पुष्पा के पास आये और पुष्पा उनके साथ पैदल ही चल दी। बुढ़िया ख़ामोशी से उस और देखती रही । अब ट्रेन चल दी थी। बुढ़िया की नजरो को जहा तक पुष्पा नजर आई वो देखती रही, फिर बुढ़िया की आँखों में आंसू  की कुछ बुँदे झलक पड़ी थी और वो पुष्पा को देखे  जा रही थी। गाड़ी दूर निकल चुकी थी। बुढ़िया अब अपनी सिट पर सुकुड़ कर बैठ गई। 

ठंडी हवा अभी भी यूँ ही आ रही थी। बुढ़िया का इस हवा का डर अब जा चूका था।   लेकिन ठंडी हवा अभी भी यूँ ही अपनी रफ्तार से आ रही थी। ये हवा कब सुकून देने वाली होगी ?  अब बुढ़िया कुछ सोच में डूब गई ।

Saturday, October 22, 2011

मिडिया और चुनाव

मिडिया और चुनाव एक दूसरे के अभिन्न  पहलू है चुनावो से पहले नेता मिडिया के आगे - आगे होते है और मिडिया पीछे- पीछे। चुनाव के बाद स्थिति बदल जाती है। मिडिया आगे- आगे और नेता पीछे- पीछे होते है। नेता जनता के पास जाते है। तभी ध्यान रखते है की  कौन सा चैनल या पेपर कवर करने के लिए आया है। दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू माने जा सकते है। नेता बिना खबर नहीं और मिडिया बिना नेता का प्रचार नहीं।  राजनीति  मिडिया से होती है और मिडिया राजनीति से, इस बात को नकार नहीं जा सकता। 

ऐसा ही मामला सतना में सामने आया। जहाँ मिडिया को पांच-पांच सौ के नोट बांटे गए। मामला भाजपा के प्रमुख नेता लाल क्रष्ण अडवाणी की रथ यात्रा के दौरान का है। जहाँ अडवाणी की प्रेस वार्ता के लिए सम्मेलन रखा गया। जिसमे अडवाणी ने अपनी रथ यात्रा की जानकारी पत्रकारों को दी। सम्मेलन में भाजपा के कार्यकर्ता ने लिफाफों में पांच-पांच सो के नोट रख कर पत्रकारों के बाँट दिए। जब पत्रकारों को  इस बात का पता चला तो कुछ पत्रकारों ने पैसे रखे लिफाफे लेने से मना कर दिया, और वापिस लोटा दिया। कुछ पत्रकार लिफाफा लेकर चले भी गए। मामले ने तूल पकड़ा और कुछ पेपर और चैनलों ने दिखा दिया और आम जनता में उजागर हो गया।  


मिडिया को चौथा स्तम्भ माना जाता है। मिडिया अपने को स्वतंत्र रखने में विश्वास रखती है । एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा की मिडिया को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। मिडिया एक प्राइवेट (निजी) सेक्टर है और ये लोकपाल के दायरे में नहीं आना चाहिए।   हालाकिं अभी इस मुद्दे पर गिल्ड में भी मतभेद बना हुआ है।   
मिडिया अपने को स्वतंत्र कहती है लेकिन, इसमें राजनीतिक पार्टियों का पैसा लगा हुआ है और कोई भी चैनल नहीं चाहेगां की, अपनी आमदनी को कम किया जाये।  लोकपाल के दायरे में आने  से मिडिया के सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक करना पड़ेगां।  जिससे उसमे लगी हुई  पूंजी का भी हिसाब देना पड़ेगा।  

मिडिया एवं अन्य एजंसियों द्वारा चुनाव से पहले  करे जाने वाले ओपिनियन पोल व् चुनाव उपरांत करे जाने वाले एक्जिट पोल अब चुनावो को प्रभावित नहीं कर पाएगें। ऐसे सर्वेक्षणों के प्रकाशन एवं प्रसारण के सम्बन्ध में कड़े दिशा - निर्देश चुनाव आयोग ने 15वीं लोकसभा के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा 17  फरवरी 2009  को जारी किए थे।  इनके तहत की चरणों के लोकसभा / विधान सभा चुनाव होने की स्थिति में ओपिनियन पोल / एक्जिट पोल प्रकाशन एवं प्रसारण पर प्रतिबन्ध पहले चरण के मतदान समाप्ति के 48  घंटे पूर्व प्रारम्भ होगा तथा अंतिम चरण के मतदान की समाप्ति तक यह जारी रहेगा। एक ही चरण के मतदान की स्थिति में भी यह प्रतिबन्ध मतदान होने के लिए निर्धारित समय से 48  घंटे पूर्व लागू होगा था। मतदान की समाप्ति तक लागू रहेगा। चुनाव आयोग के यह  दिशा - निर्देश प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मिडिया सहित अन्य मिडिया पर भी लागू होगें।  

ओपिनियन पोल व् एक्जिट पोल के परिणामो के प्रकाशन / प्रसारण के सम्बन्ध में ऐसे ही दिशा - निर्देश चुनाव आयोग ने पहले 20 जनवरी 1998 को जारी किए थे जिनमे इनके प्रकाशन एवं प्रसारण को मतदान से पहले प्रचार बंद होने के समय से मतदान होने के आधे घंटे बाद तक ले किए प्रतिबंधित किया गया था। चुनाव आयोग के उन  दिशा - निर्देशों को उच्चतम न्यायालय में चुनोती दी गई थी न्यायालय में इस मामले पर सुनवाई के दोरान ही चुनाव आयोग ने अपने दिशा - निर्देश सितम्बर  1999 में वापिस ले किए थे।    
चुनाव आयोग ने संदिग्ध लेनदेन और धन के संदेहास्पद प्रवाह के बारे में डेटाबेस तैयार करने के लिए  पांच राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को हाल ही में दिशा-निर्देश जारी किये। चुनाव आयोग का मानना है की मिडिया का प्रयोग जनता को भ्रमित करने के लिए किया जाता है। 

मिडिया अब अन्ना की टीम का पीछा कर रही है हिसार में जो हुआ है। उसे अन्ना फेक्टर नहीं कहा जा सकता लेकिन, अरविन्द केजरीवाल चुनावी राज्यों का दौरा कर रहे है। अन्ना की टीम हिसार को अपनी बड़ी जीत बता रहे है लेकिन, मिडिया मसाला लगा- लगा कर खबर को दिखाती रही।   

सभी चैनल और अखबार राजनितिक पार्टियों की छत्र - छाया से ही चलते है।  यही छत्र - छाया खबरों को प्रभावित करती है प्रभावित करने का तरीका अलग - अलग हो सकता है जैसे की भ्रष्ट व्यक्ति के बारे में उसकी कमजोरी को उजागर ना करना। उसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए उसके पक्ष में खबरे दिखाना या अख़बार में छापना। जिसके कारण आम आदमी जो मिडिया को सही मानकर वोट करता है और एक घुसखोर और भ्रष्ट व्यक्ति को वोट देकर नेता बना देते है। कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने लगतार प्राइम टाइम में अपना विज्ञापन चलवाया। चुनाव दूर है लेकिन, टी वी पर चल रहा विज्ञापन लोगो को भ्रमित करने के लिए काफी है।  
मिडिया अपने को पाक छवीं साबित करने पर तुला हुआ है। लेकिन पिछले कुछ समय में हुई घटनाओ से लगता है की, अब मिडिया का डब्बा गोल होने की कगार पर खड़ा हुआ है। 

Monday, October 17, 2011

बाजार का दबाव या फिर ध्यान नहीं देगें हम - जनसत्ता





बाजार का दबाव में हर चीज  जल्दी में हो रही है टी वी पे कई बार  गलत टिगर चलते देखा है चाहे वो टॉप का हो  या ब्रेकिंग न्यूज का हो . टी आर पी का खेल होने के  कारण गलती होती रहती है ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है लेकिन जब अखबारों में इसी गलतिय होती है तो, हैरानी होती है गलती भी छोटी- बड़ी कोई  भी हो,  गलती तो गलती होती है
जनसत्ता  अखबारों के मामले में जाना माना अख़बार है ये ज्यादातर लेख विचार और सम्पादकीय के लिए पढ़ा जाता है  लेकिन अख़बार के  पहले  पेज पर ही पढ़ते ही गलतिया नजर में आती है तो पेपर का  स्तर गिरते नजर आता है पिछले कुछ दिनों की कुछ गलतिया जो जनसत्ता ने की है
9
अक्तूबर  पेज - 3
शीर्षक - तुगलकाबाद गांव को बचाने की खातिर ............तेज  
में तुगलकाबाद गांव तो काफी पहसे से बसा हुआ है - पहले से
इसी में दूसरी गलती (परिसीमन में बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट चार लोकसभा सीटमों में बंट गई) -  सीटो में

10 अक्तूबर  पेज - 1
शीर्षक - गुपचुप तरीके से गोपालगढ़ पहुंचे राहुल
राहुल गाँधी  ने भट्टा  - पारसौल की तरह रविवार को गोपालगढ़ में अचानक पहुंच कर अपनी कार्यशैली को एक बार फिर दर्शा दिया 
ये पेपर का फोर्मेट( स्टाइल ) हो सकता है इस लिए इसे गलती नहीं कह सकते है

10 अक्तूबर  पेज - 3
शीर्षक - स्वागत समारोह
प्रदेश
इसमें गलती नहीं कहा जा सकता लेकिन ये लगता गलती जैसा ही है क्यों की प्रदेश में को बड़ा कर दिया है और प्र के को सामान्य में छोड़ दिया है जिससे ये आधा फ नजर आ रहा है
 
10 अक्तूबर  पेज - 4
शीर्षक - जंगपूरा विधान सभा क्षेत्र में ..............राजनीति
........
अतिरिक्त आयुक्त मुख्य अभियंता फिरोज , उपयुक्त   निगम के कई अधिकारियो के आलावा क्षेत्र के पार्षद ............ - और निगम
 
10 अक्तूबर  पेज - 5
शीर्षक -  दरौंदा उपचुनाव के लिए सभी ..................
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है माजा जा रहा है - माना
इसी में आगे

कांग्रेस  ने डा कलिका शरण सिंह - डॉ
ये पेपर का फोर्मेट( स्टाइल ) हो सकता है इस लिए इसे गलती नहीं कह सकते है

10
अक्तूबर  पेज - 5
शीर्षक - गुमराह करने वाले विज्ञापनों ...........
गुमराह करने वाले विज्ञापनों से निपटते है दुनिया में करीब 30  से 40  ऐसे देश है जहां स्वनियमन है कछ देशो में कार्यकारी निकाय या व्यापार आयोग है - कुछ

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अक्तूबर  पेज - 1
शीर्षक -स्वच्छ राजनीति और सुशासन .............
तो उन्होंने उसे भी नकार दिया । तब उन्हेंम सफेद रंग का अंग वस्त्र भेंट किया गया  - यहाँ पर अधिक लगा दिया है 
 
12
अक्तूबर  पेज - 1
शीर्षक - जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग नहीं : पाक
अनन्य  अधिकार




 
13
अक्तूबर  पेज - 4
शीर्षक - मायावती के गृह जिले में लुटेरो का राज, आम लोग दहशत में
इस खबर में  सात अप्रैल , 11 अप्रैलएक अगस्त, 11  अगस्त ,   जैसे शब्द है कही दिनांक संख्या में और कही हिंदी के शब्दों में
नोट - ये पेपर का फोर्मेट( स्टाइल ) हो सकता है इसलिए इसे पूर्णत गलती नहीं कह सकते है

17
अक्तूबर  पेज - 1
शीर्षक - न्यूज चैनलों की .................खाका

 वतर्मान = वर्तमान
     निषत=  निश्चित
 
बचकाना होग = बचकाना होगा
 
मंत्रलय = मंत्रालय
 
घंघे = धंधे
  …. =प्रतीक
और कुछ ऐसे शब्द है जो मंगल फॉण्ट में नहीं लिख सका